"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Thursday, December 21, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 18 pg 18 विवाह योग

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 18 pg 18 विवाह योग 


इस प्रेम निवेदन के बाद ,मेरा मन पूरी तरह से पढ़ाई से हट  चुका था ,हर समय मन में ललित ही रहता था ,रात दिन सोते जागते जब तक पापा टूर पे थे मैं ललित की बातो में पूरी तरह खोयी रही ,आज सुबह पापा आ गए थे ,और मैं पापा की लडली  पापा से  नज़रे चुराए इधर उधर बच रही थी की उनका सामना न करना पड़े ना जाने क्यों मेरा मन ये जनता था की मैंने जो किया है वो सही नहीं है ,पापा का विश्वास मुझे उनका सामना ही नहीं करने दे रहा था ,की पापा खुद ही मेरे पास आ गए और बोले "क्यों बिटिया रानी एक बार भी पापा के पास नहीं आयी पापा से कोई गलती हुयी क्या? ,जो मेरी बेटी रूठ गयी मुझसे। अरे अब तो बड़ी हो गयी है मेरे दोस्त का बेटा लेक्चरार है  उन्होंने आज ही मेरे हाथ में एक चांदी  का सिक्का दे के रिश्ता पक्का कर दिया है,बहुत अच्छा घर है, कोई डिमांड नहीं बस अच्छी लड़की चाहिए तो मेरी बेटी से अच्छी कौन हो सकती है भला मैंने हाँ कर दी देखा भाला घर है ,बहुत भाग्यवान हो तुम जो बिना ढूंढे हीरे जैसा लड़का मिल गया। "  

मैं  बेचारी ये भी न समझी की इस किशोर और युवा अवस्था के मिलन के समय हर विपरीत लिंग की तरफ ये मन आकर्षित होता है ,ये प्यार नहीं सिर्फ छलावा होता है सिर्फ आकर्षण। 
       मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया हो कुछ समझ ही नहीं आया की ये क्या हुआ ,मैं भला ललित के सिवा किसी और से विवाह कैसे कर सकती हूँ ,,पर पापा से बिना कुछ कहे पापा का हाथ छुड़ा अंदर चली गयी ,पापा बोले लो शर्मा गयी मेरी प्यारी सी गुड़िया ,मम्मी से बोले तयारी शुरू करो आनेवाली सर्दी तक विवाह क्र हम भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगे. 
               दरवाज़ा अंदर से बंद कर  लिया और ,वही बैठ गयी ,सोचने लगी अब सब को क्या कहूँगी ,की बाहर से कुछ आवाज़े आने लगी ,अरे ये तो ललित  की आवाज़ थी ,वो कुछ कह रहा था पापा चिल्ला रहे थे,अचानक जोर से आवाज़ आयी बोले बुलाऊ अपनी लाड़ली को बाहर इसीलिए मेरे सामने नहीं आ रही है अभी फैसला करता हूँ ,माँ मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटा रही थी ,मैं डर के काँप रही थी उफ़ आज क्या होनेवाला था ,माँ मुझे खींचते हुए पापा के सामने ले गयी ,मुझे ऐसी हालत में देख ललित तुरंत बोला चाचीजी आप उसका हाथ छोड़िये वह मेरी अमानत है ,हे राम मुझे लगा धरती फट जाये और मैं उसी में समां जाऊ माँ पापा नफरत से मुझे देख रहे थे,
पापा बोले ओह तुम्हारी अमानत अच्छा,तुम हो क्या ?मेरी बेटी को ये कहनेवाले वह तुम्हारे परिवार की तरह नीच नहीं जो इस तरह की बाते करे ,चले जाओ  यहाँ से  ,वरना  कोई अनर्थ ना हो जाए ,मेरी नज़रे अभी भी नीचे ही थी,ललित ने कहा "अगर आपकी बेटी ये कह दे की उसका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं तो हमेशा के लिए चला जाऊंगा,वरना अपनी मर्ज़ी से जाऊंगा,पूछिए मेरे सामने की जो कहा  मैंने वह सच है या नहीं?" 
       पापा मेरी तरफ देख के बोले "ये मेरा खून है मैं जनता हूँ इसे ,ये सब झूट है,"
ललित ने कहा '"पूछिए चाचा जी अभी इसी समय चला जाऊंगा फिर कभी  शक्ल भी नहीं देखेंगे, आप मेरे गुरु भी हैं ,यही मेरी दक्षिणा होगी  बार आपकी बेटी को कहना होगा की मेरी कही हर बात झूट है"  पापा ने मेरी तरफ देख के बोला चलो आज यही सही ,बोलो बेटी क्या ललित जो कह रहा है वो सही है ,मेरे हाथ पैर  दिमाग जुबान कुछ भी मेरे कंट्रोल में नहीं था बस ,मैं जमीन की तरफ देख रही थी और काँप रही थी ,पापा के विश्वास का खून किस तरह किया है मैंने सोच के बस मर जाना चाहती ,ललित ने कहा आज उत्तर ना दिया तो फिर हमेशा के लिए भूल जाना मुझे ,पापा ने फिर पूछा बोलो सही है या नहीं ,अचानक मुझे ना जाने क्या हुआ की मैंने हाथ  जोड़ के पापा से कहा सही है ,और उनके गले लग के ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। ललित चला गया। पापा मुझे अपने से अलग कर दूसरे कमरे में चले गए और मैं जैसे पू रे संसार में अकेली रह गयी ,
बेलबज रही थी जा कर दरवाज़ा खोला तो सामने भइया के सर अपनी माँ और बहनो के साथ आये थे ,मैंने अंदर जा कर  माँ को बताया ,माँ पापा बाहर र आये और उन्हें ड्राइंग रूम में ले गए ,पर वो आखिर क्यों आये थे  ...................................................... 

Tuesday, December 19, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 17 pg 17 अभिव्यक्तियाँ

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 17 pg 17 अभिव्यक्तियाँ

जन्म दिन भी क्या कमाल का दिन होता है हम स्वयं ही अपने जन्म को भव्य रूप से मनाते है ,ना जाने क्यों? बस मानते हैं ,मेरे सभी मित्र आमंत्रित थे ,माँ ने आशीष के परिवार को भी पडोसी होने के नाते बुला लिया था ,सब अंताक्षरी खेल रहे थे ,ललित भी था बड़े ही अच्छे गाने गा रहा था मैं भी खूब दाद दे रही थी ,आशीष ने भी गाया तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी ,मैं घमंड से चूर हो चुकी थी खुद पर, लोग मेरे लिए क्या- क्या कर रहे हैं ,तभी मास्टर साहब भी आये उन्हें बुलाना ही भूल गए थे हम सब पर, फिर भी उन्होंने मुझे विश किया ,हमलोगो ने उन्हें केक खिलाया ,थोड़ी देर में ही सब चले गए। हम सब तोहफों की ओर चल पड़े ,कुछ ही देर में रात गहरी हो गयी और सब कुछ वही छोड़ कर के सब सोने चले गए ,सुबह मैं कालेज  चली गयी और दिन रोज़ की तरह शरू हो गया ,शाम को घर आयी तो मास्टर साब मेरा इंतज़ार कर रहे थे ,उन्होंने मुझे भाई के हाथो एक एल्बम भिजवाई ,मैंने रख ली उसे खोल के देखा तो आखिरी पेज पर उनकी फोटो थी ,मुझे सब समझ आ रहा था ,मुझे पता था की उनके दिल में भी मेरे लिए कुछ कल्पनाये थी , पर गर्व से चूर मैंने तुरंत भाई को बुलाया और कहा "अरे! तुम्हारे सर ने मुझे इस्तेमाल की हुयी पुरानी  एलबम दे दी मुझे नहीं चाहिए इसमें उनकी फोटो लगी हुयी है " और एलबम  वापस भेज दी ,कोई आवाज़ नहीं आयी काफी देर के बाद भाई अंदर आया, जब मैंने पूछा सर ने कुछ कहा तो वो बोला  ,नहीं  'बोले  नहीं पर वह तुरंत ही चले गए ,दिल में कुछ अजीब सा अफ़सोस सा हुआ वह एक बहुत अच्छा लड़का था और दिल के किसी कोने में उनका आदर सदैव रहता था ,मैं  समझ  गयी की मैंने उनके दिल को गहरी चोट दी है पर, उफ़! ये उम्र, और फिर मेरा ये गर्व , थोड़ी ही देर में सब भूल गयी ललित आया था , हम सब तोहफों के बारे में बात करने लगे ,उसने मुझे कुछ भी नहीं दिया था,गुस्सा आयी मुझे, गुस्से में डेरी उठा छत पर चली गयी डायरी  में लिखना मेरी आदत थी ,डायरी खोलते ही मुझे जैसे करंट सा लगा , मेरी डायरी में एक लेटर रखा मिला ,ललित का लव लेटर उफ़ !दिल ऐसा धड़क रहा था की लगता था बाहार आ जायेगा ,समझ ही नहीं आ रहा था कहाँ  छुपाऊं कहाँ पढूँ , जैसे कही कोई जगह ही नहीं थी इस दुनिया में  ,उसे पढ़ नहीं पायी बस छुपाने का प्रयत्न  ही करती रही ,४ दिन ऐसे ही बीत गए पांचवे दिन पापा फिर टूर पर चले गए माँ क्लब भाई बहन स्कूल ,उस दिन मैं कालेज नहीं गयी पत्र  जो पढ़ना था ,११ बजे जब सब चले गए तो सारे दरवाज़े बंद कर वो पत्र बाहर निकाला ,खोला पत्र गुलाब  की पत्तियों से भरा हुआ था बहुत सजा हुआ  एक दिल था जिसमे धमकी देते हुए लिखा था ,,अगर ४ दिन में तुमने कोई जवाब ना दिया तो  ये रिश्ता पक्का समझना। मैं  फिर घबरा गयी ,४ दिन उफ़ ! ४ दिन तो तो केवल पत्र छुपाने में ही निकल गए थे ,तभी डोरबेल बजी समझ गयी ये जरूर ललित ही होगा ,दौड़ के दरवाज़े के पास गयी पर बिना खोले ही बात करने लगी,मैंने कहा घर में कोई नहीं है ,मेरे सर में दर्द है तुम शाम को आना ,तो वह बोला  चुपचाप दरवाज़ा खोलो ,मैंने दरवाज़ा खोल दिया ,और उसने मुझे बिना कुछ बोलने का मौका दिए ही गले से लगा लिया और मैं बिना कुछ सोचे समझे चुप से उसके गले लग गयी ,मुझे उससे दूर जाने का दिल ही नहीं किया ,लगा जैसे जीवन में अब कुछ पाना शेष नहीं फिर उसने अपने हाथो से मेरा सर ऊपर उठा के कहा "I love you,और मैं भी I TOO कह के फिर उसके गले लग गयी ,उसने हंस के कहा मैडम अब हटो और चाय बनाओ। ............................
मैं हँसते हुए चाय बनाने चली गयी और ललित के बारे में सोचने लगी मन फिर बैचैन हो गया।..................................  बाकि अगली किश्त में

Sunday, December 17, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 16 pg 16बहती हवा

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 16  pg 16 बहती हवा 

ललित का हाथ थाम तो लिया मैंने ,पर कुछ बोल नहीं पायी जैसे शब्द मेरे होंठो पर बर्फ बन गए थे ,लाखो बाते थी जो पिघलने को तैयार  ना थी ,वह मेरी तरफ देखने लगा ,मैंने सर झुका लिया और कहा गुड नाईट "अपना ध्यान रखना ,वह चला गया और मेरी नज़र उसका पीछा तब करती रही जब तक वो नज़र से ओझल नहीं हो गया ,धीरे धीरे समय बीत रहा था ,ललित घर बहुत कम आता था और सर का आना जाना और बढ़ गया था 
  एक दिन आदत के अनुसार मैं  पेंटिंग बना रही थी ,मेरा प्यारा सा शौक जिसे मैं जब भी टाइम मिलता किया करती थी पेंटिंग एक राजपूत औरत की थी अभी, बस स्केच ही बनाया था ,की माँ मुझे बुलाने लगी पेंटिंग बाहर  ही छोड़ मैं अंदर चली आयी माँ के पास बुआ का फ़ोन था ,हम सब बात करने लगे बीच में जाने कब सर भी आ कर  चले गए लाइट नहीं थी और खासी गर्मी थी ,फ़ोन रख मैं  भी बाहर आ गयी ,अचानक याद आया बाहर मेरी पेंटिंग का स्केच था जो कही नहीं दिख रहा था ,बहुत ढूंढा बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे ,भाई बाहर दोस्तों के साथ खेल रहा था उसके घर आने पर जब मैंने पूछा तो बोला ,अरे वो तो सर ले गए बोले ये मैं  ले जाता हूँ , और ले गए ,हद  हो गयी मुझे बड़ा अजीब लगा पर कुछ भी ना बोल कर अंदर आ गयी मन ही मन सोचने लगी चोर कही के (उफ़ ये बचपना), माँ की खाना बनाने में मदद करने लगी ,अगले दिन शाम को लेट आयी एक्स्ट्रा क्लासेज थी देखा मेरी स्टडी टेबल पर एक स्केच रखा है जब पास से देखा तो वह मेरा नहीं किसी और का बनाया हुआ राजपूत राजा का स्केच था  ,भैया के सर उस  रानी का स्केच अपने पास रख मुझे ये राजा का स्केच दे गए थे ,पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा आने के बदले ख़ुशी हुयी ,सीधे शीशे के सामने खड़ी हो खुद को गुरुर से देखने लगी ,ललित का ख्याल भी दूर- दूर तक नहीं था, बस कुछ नया सा अहसास हो रहा था ,बहुत दिनों से बाहर बालकनी में नहीं गयी थी पर आज चली गयी ,आशीष अपने दोस्तों के साथ वही था, सब एक साथ गाने लगे और ज़ोर से बोले नमस्कार ,मैं घबरा के अंदर चली आयी पर आज अहसास दूसरा था लगने लगा सारा जमाना पागल है मेरे लिए और मैं  एक अप्सरा हूँ। घंटो तक आईने के सामने खड़ी रहने के बाद याद आया, कल मेरा जन्मदिन है कितनी तैयारी करनी है , और सब भूल के माँ  पापा के साथ जा कल की पार्टी के बारे में बात करने लगी ,ललित को घर से गए एक हफ्ता ही हुआ था पापा ने उसे भी बर्थडे में आमंत्रित  किया और कहा कल रात यही रुक जाना। ललित ने हाँ में सर हिला दिया वो आजकल मेरी तरफ देखता भी ना था ,जाने दो मुझे क्या? सोच के जन्मदिन के ख्यालो में खो  गयी मैं। ............................................................ 
 बाकि अगली पोस्ट में 
शिखानारी 

Wednesday, December 13, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की 0 chapter 15 (लम्हे अनजाने )

"वर्तिका अनन्त वर्त की 0 chapter 15(लम्हे अनजाने )
ललित का इस तरह रोज़ वापस आना पापा के मन में संशय का कारण बन गया था ,अगली बार पापा स्वयं उसे स्टेशन ले के गए , ट्रैन  आयी और ललित चला गया ,कुछ दिन मन काफी उदास सा रहा पर उफ़! ये उम्र, भाई के सर वापस आने लगे थे ,और  से उनकी बातो में उलझ गयी उनका इंतज़ार चाय बनाना ,उनके आने से पहले पुराने गाने लगा ना और उनके कमरे में आ कर उनके  सुन लेने के बाद गाने बंद करना ,उनका मुस्कुराना और मेरा चुपचाप चले जाना इन लम्हो का इंतज़ार रहने लगा था मुझे ,की फिर 15  दिनों के बाद ललित का वापस  आगमन हो गया ,इस बार उसका बहाना भी जबरदस्त था वो पापा से ट्रेनिंग लेने आया था ,पापा बहुत खुश हुए और रोज़  2 घंटे ललित की इंटरव्यू ट्रेनिंग शुरू हो गयी ,उसके बाद पापा अपने काम को चले जाते और ललित मेरे आस पास घूमना
शुरू कर  देता ,मुझे सर के मौन प्रेम से, ललित के  मुखर प्रेम का  आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित करने लगा था ,उसकी हर बेबाकी उसका स्टाइल लगती थी ,अक्सर सर के आने के टाइम मैं आजकल  माँ और ललित के साथ कही बाहर घूमने चली जाती थी ,ललित मुझ पर अपना बहुत अधिकार जमाता , और मैं बहुत ही खुश होती।
पापा आज बॉम्बे गए थे मीटिंग में ,माँ भी लॉयनेस क्लब की चयरपर्सन होने के कारण, घर में नहीं थी ,क्यूंकि आज क्लब में कोई सोशल वर्क का प्रोग्राम था ,भैया और बहन दोनों स्कूल में थे ,घर में केवल ललित और मैं ,मुझे बहुत घबराहट सी हो रही थी , की ललित की आवाज़ आयी ज़रा एक कप चाय बना दो सर में बहुत दर्द है ,मैं चाय बनाने चली गयी चाय  ललित को दी तो वो बोला  क्या, मेरे सर में बाम लगा दोगी बहुत दर्द है,मैंने उसकी तरफ देखा आंखे बंद थी ,सोचा लगा देती हूँ ,बेचारा , इतना मेरा ध्यान भी तो रखता है मेरा , मैंने बाम उठाया और उसके माथे पर लगाने लगी ,उसने कहा पीठ पर लगा दो और शर्ट उतार के लेट गया ,मुझे सब अजीब सा लग रहा था पर मैंने उसकी पीठ पर बाम लगाने को हाथ रखा ही था की वह अचानक मुड़ गया ,मैं झुकी हुए थी मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं उसके ऊपर गिर सी गयी, मैं कुछ समझ पाती इससे पहले उसने मुझे ज़ोर से बाहो में भर लिया,मेरे होश गुम हो गए थे उसने मेरे गले पर अपने होंठ रख दिए , और मुझे होश आ गया ,' ये सब क्या हो रहा है उसे धक्का दे कर  मैं कमरे से बाहर चली गयी,मेरी साँसे नियंत्रण में नहीं थी ,अंदर ललित का हाल भी कुछ ऐसा ही था ,खिड़की से दिख रहा था की वो बहुत शर्मिंदा है ,सर पकड़ के बैठा हुआ था। उसने तुरंत अपने कपड़े पैक किये और कही  चला गया ,शाम को माँ के आने के बाद घर आया और बोला  चाचीजी मैंने पास में रूम ले लिया है ,अब वही रहूँगा बस खाना खाने और ट्रेनिंग टाइम आऊंगा। मेरी तरफ देखा भी नहीं, मैंने पानी दिया तो उसने मेरी तरफ देखा आँखों में शर्मिंदगी और आंसू थे । वो जा रहा था माँ अपने कमरे में थी की मैंने खुद उसका हाथ पकड़ लिया। .......................................
बाकि अगली किश्त में.............................................................