"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Tuesday, December 19, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 17 pg 17 अभिव्यक्तियाँ

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 17 pg 17 अभिव्यक्तियाँ

जन्म दिन भी क्या कमाल का दिन होता है हम स्वयं ही अपने जन्म को भव्य रूप से मनाते है ,ना जाने क्यों? बस मानते हैं ,मेरे सभी मित्र आमंत्रित थे ,माँ ने आशीष के परिवार को भी पडोसी होने के नाते बुला लिया था ,सब अंताक्षरी खेल रहे थे ,ललित भी था बड़े ही अच्छे गाने गा रहा था मैं भी खूब दाद दे रही थी ,आशीष ने भी गाया तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी ,मैं घमंड से चूर हो चुकी थी खुद पर, लोग मेरे लिए क्या- क्या कर रहे हैं ,तभी मास्टर साहब भी आये उन्हें बुलाना ही भूल गए थे हम सब पर, फिर भी उन्होंने मुझे विश किया ,हमलोगो ने उन्हें केक खिलाया ,थोड़ी देर में ही सब चले गए। हम सब तोहफों की ओर चल पड़े ,कुछ ही देर में रात गहरी हो गयी और सब कुछ वही छोड़ कर के सब सोने चले गए ,सुबह मैं कालेज  चली गयी और दिन रोज़ की तरह शरू हो गया ,शाम को घर आयी तो मास्टर साब मेरा इंतज़ार कर रहे थे ,उन्होंने मुझे भाई के हाथो एक एल्बम भिजवाई ,मैंने रख ली उसे खोल के देखा तो आखिरी पेज पर उनकी फोटो थी ,मुझे सब समझ आ रहा था ,मुझे पता था की उनके दिल में भी मेरे लिए कुछ कल्पनाये थी , पर गर्व से चूर मैंने तुरंत भाई को बुलाया और कहा "अरे! तुम्हारे सर ने मुझे इस्तेमाल की हुयी पुरानी  एलबम दे दी मुझे नहीं चाहिए इसमें उनकी फोटो लगी हुयी है " और एलबम  वापस भेज दी ,कोई आवाज़ नहीं आयी काफी देर के बाद भाई अंदर आया, जब मैंने पूछा सर ने कुछ कहा तो वो बोला  ,नहीं  'बोले  नहीं पर वह तुरंत ही चले गए ,दिल में कुछ अजीब सा अफ़सोस सा हुआ वह एक बहुत अच्छा लड़का था और दिल के किसी कोने में उनका आदर सदैव रहता था ,मैं  समझ  गयी की मैंने उनके दिल को गहरी चोट दी है पर, उफ़! ये उम्र, और फिर मेरा ये गर्व , थोड़ी ही देर में सब भूल गयी ललित आया था , हम सब तोहफों के बारे में बात करने लगे ,उसने मुझे कुछ भी नहीं दिया था,गुस्सा आयी मुझे, गुस्से में डेरी उठा छत पर चली गयी डायरी  में लिखना मेरी आदत थी ,डायरी खोलते ही मुझे जैसे करंट सा लगा , मेरी डायरी में एक लेटर रखा मिला ,ललित का लव लेटर उफ़ !दिल ऐसा धड़क रहा था की लगता था बाहार आ जायेगा ,समझ ही नहीं आ रहा था कहाँ  छुपाऊं कहाँ पढूँ , जैसे कही कोई जगह ही नहीं थी इस दुनिया में  ,उसे पढ़ नहीं पायी बस छुपाने का प्रयत्न  ही करती रही ,४ दिन ऐसे ही बीत गए पांचवे दिन पापा फिर टूर पर चले गए माँ क्लब भाई बहन स्कूल ,उस दिन मैं कालेज नहीं गयी पत्र  जो पढ़ना था ,११ बजे जब सब चले गए तो सारे दरवाज़े बंद कर वो पत्र बाहर निकाला ,खोला पत्र गुलाब  की पत्तियों से भरा हुआ था बहुत सजा हुआ  एक दिल था जिसमे धमकी देते हुए लिखा था ,,अगर ४ दिन में तुमने कोई जवाब ना दिया तो  ये रिश्ता पक्का समझना। मैं  फिर घबरा गयी ,४ दिन उफ़ ! ४ दिन तो तो केवल पत्र छुपाने में ही निकल गए थे ,तभी डोरबेल बजी समझ गयी ये जरूर ललित ही होगा ,दौड़ के दरवाज़े के पास गयी पर बिना खोले ही बात करने लगी,मैंने कहा घर में कोई नहीं है ,मेरे सर में दर्द है तुम शाम को आना ,तो वह बोला  चुपचाप दरवाज़ा खोलो ,मैंने दरवाज़ा खोल दिया ,और उसने मुझे बिना कुछ बोलने का मौका दिए ही गले से लगा लिया और मैं बिना कुछ सोचे समझे चुप से उसके गले लग गयी ,मुझे उससे दूर जाने का दिल ही नहीं किया ,लगा जैसे जीवन में अब कुछ पाना शेष नहीं फिर उसने अपने हाथो से मेरा सर ऊपर उठा के कहा "I love you,और मैं भी I TOO कह के फिर उसके गले लग गयी ,उसने हंस के कहा मैडम अब हटो और चाय बनाओ। ............................
मैं हँसते हुए चाय बनाने चली गयी और ललित के बारे में सोचने लगी मन फिर बैचैन हो गया।..................................  बाकि अगली किश्त में

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