"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 16 pg 16 बहती हवा
ललित का हाथ थाम तो लिया मैंने ,पर कुछ बोल नहीं पायी जैसे शब्द मेरे होंठो पर बर्फ बन गए थे ,लाखो बाते थी जो पिघलने को तैयार ना थी ,वह मेरी तरफ देखने लगा ,मैंने सर झुका लिया और कहा गुड नाईट "अपना ध्यान रखना ,वह चला गया और मेरी नज़र उसका पीछा तब करती रही जब तक वो नज़र से ओझल नहीं हो गया ,धीरे धीरे समय बीत रहा था ,ललित घर बहुत कम आता था और सर का आना जाना और बढ़ गया था
एक दिन आदत के अनुसार मैं पेंटिंग बना रही थी ,मेरा प्यारा सा शौक जिसे मैं जब भी टाइम मिलता किया करती थी पेंटिंग एक राजपूत औरत की थी अभी, बस स्केच ही बनाया था ,की माँ मुझे बुलाने लगी पेंटिंग बाहर ही छोड़ मैं अंदर चली आयी माँ के पास बुआ का फ़ोन था ,हम सब बात करने लगे बीच में जाने कब सर भी आ कर चले गए लाइट नहीं थी और खासी गर्मी थी ,फ़ोन रख मैं भी बाहर आ गयी ,अचानक याद आया बाहर मेरी पेंटिंग का स्केच था जो कही नहीं दिख रहा था ,बहुत ढूंढा बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे ,भाई बाहर दोस्तों के साथ खेल रहा था उसके घर आने पर जब मैंने पूछा तो बोला ,अरे वो तो सर ले गए बोले ये मैं ले जाता हूँ , और ले गए ,हद हो गयी मुझे बड़ा अजीब लगा पर कुछ भी ना बोल कर अंदर आ गयी मन ही मन सोचने लगी चोर कही के (उफ़ ये बचपना), माँ की खाना बनाने में मदद करने लगी ,अगले दिन शाम को लेट आयी एक्स्ट्रा क्लासेज थी देखा मेरी स्टडी टेबल पर एक स्केच रखा है जब पास से देखा तो वह मेरा नहीं किसी और का बनाया हुआ राजपूत राजा का स्केच था ,भैया के सर उस रानी का स्केच अपने पास रख मुझे ये राजा का स्केच दे गए थे ,पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा आने के बदले ख़ुशी हुयी ,सीधे शीशे के सामने खड़ी हो खुद को गुरुर से देखने लगी ,ललित का ख्याल भी दूर- दूर तक नहीं था, बस कुछ नया सा अहसास हो रहा था ,बहुत दिनों से बाहर बालकनी में नहीं गयी थी पर आज चली गयी ,आशीष अपने दोस्तों के साथ वही था, सब एक साथ गाने लगे और ज़ोर से बोले नमस्कार ,मैं घबरा के अंदर चली आयी पर आज अहसास दूसरा था लगने लगा सारा जमाना पागल है मेरे लिए और मैं एक अप्सरा हूँ। घंटो तक आईने के सामने खड़ी रहने के बाद याद आया, कल मेरा जन्मदिन है कितनी तैयारी करनी है , और सब भूल के माँ पापा के साथ जा कल की पार्टी के बारे में बात करने लगी ,ललित को घर से गए एक हफ्ता ही हुआ था पापा ने उसे भी बर्थडे में आमंत्रित किया और कहा कल रात यही रुक जाना। ललित ने हाँ में सर हिला दिया वो आजकल मेरी तरफ देखता भी ना था ,जाने दो मुझे क्या? सोच के जन्मदिन के ख्यालो में खो गयी मैं। ............................................................
बाकि अगली पोस्ट में
शिखानारी
ललित का हाथ थाम तो लिया मैंने ,पर कुछ बोल नहीं पायी जैसे शब्द मेरे होंठो पर बर्फ बन गए थे ,लाखो बाते थी जो पिघलने को तैयार ना थी ,वह मेरी तरफ देखने लगा ,मैंने सर झुका लिया और कहा गुड नाईट "अपना ध्यान रखना ,वह चला गया और मेरी नज़र उसका पीछा तब करती रही जब तक वो नज़र से ओझल नहीं हो गया ,धीरे धीरे समय बीत रहा था ,ललित घर बहुत कम आता था और सर का आना जाना और बढ़ गया था
एक दिन आदत के अनुसार मैं पेंटिंग बना रही थी ,मेरा प्यारा सा शौक जिसे मैं जब भी टाइम मिलता किया करती थी पेंटिंग एक राजपूत औरत की थी अभी, बस स्केच ही बनाया था ,की माँ मुझे बुलाने लगी पेंटिंग बाहर ही छोड़ मैं अंदर चली आयी माँ के पास बुआ का फ़ोन था ,हम सब बात करने लगे बीच में जाने कब सर भी आ कर चले गए लाइट नहीं थी और खासी गर्मी थी ,फ़ोन रख मैं भी बाहर आ गयी ,अचानक याद आया बाहर मेरी पेंटिंग का स्केच था जो कही नहीं दिख रहा था ,बहुत ढूंढा बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे ,भाई बाहर दोस्तों के साथ खेल रहा था उसके घर आने पर जब मैंने पूछा तो बोला ,अरे वो तो सर ले गए बोले ये मैं ले जाता हूँ , और ले गए ,हद हो गयी मुझे बड़ा अजीब लगा पर कुछ भी ना बोल कर अंदर आ गयी मन ही मन सोचने लगी चोर कही के (उफ़ ये बचपना), माँ की खाना बनाने में मदद करने लगी ,अगले दिन शाम को लेट आयी एक्स्ट्रा क्लासेज थी देखा मेरी स्टडी टेबल पर एक स्केच रखा है जब पास से देखा तो वह मेरा नहीं किसी और का बनाया हुआ राजपूत राजा का स्केच था ,भैया के सर उस रानी का स्केच अपने पास रख मुझे ये राजा का स्केच दे गए थे ,पता नहीं क्यों मुझे गुस्सा आने के बदले ख़ुशी हुयी ,सीधे शीशे के सामने खड़ी हो खुद को गुरुर से देखने लगी ,ललित का ख्याल भी दूर- दूर तक नहीं था, बस कुछ नया सा अहसास हो रहा था ,बहुत दिनों से बाहर बालकनी में नहीं गयी थी पर आज चली गयी ,आशीष अपने दोस्तों के साथ वही था, सब एक साथ गाने लगे और ज़ोर से बोले नमस्कार ,मैं घबरा के अंदर चली आयी पर आज अहसास दूसरा था लगने लगा सारा जमाना पागल है मेरे लिए और मैं एक अप्सरा हूँ। घंटो तक आईने के सामने खड़ी रहने के बाद याद आया, कल मेरा जन्मदिन है कितनी तैयारी करनी है , और सब भूल के माँ पापा के साथ जा कल की पार्टी के बारे में बात करने लगी ,ललित को घर से गए एक हफ्ता ही हुआ था पापा ने उसे भी बर्थडे में आमंत्रित किया और कहा कल रात यही रुक जाना। ललित ने हाँ में सर हिला दिया वो आजकल मेरी तरफ देखता भी ना था ,जाने दो मुझे क्या? सोच के जन्मदिन के ख्यालो में खो गयी मैं। ............................................................
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