वर्तिका अनन्त वर्त की 0 chapter12 इंद्रधनुष
'मैं ने देखा एक मेरा हमउम्र लड़का अपनी सीट ढूंढ रहा था ,मेरी मां उसकी बर्थ पर स रही थी,मैंने पापा को बताया तो पापा ने अपनी बर्थ उससे दे दी जो जस्ट मेरे सामनेवाली ही थी ,वो आराम से लेट गया ,और बुक पढ़नेलगा ,पर जब उससे नज़र मिलती वो मेरी तरफ ही देख रहा होता ,मेरा ध्यान भी बार बार उसकी तरफ ही जा रहा था ,अचानक उसने मुझसे मेरी बुक मांगी और मैंने दे दी ,रात काफी हो गयी थी मैं सो गयी ,सुबह 7:00 ही मेरा स्टेशन आ गया वो लड़का पडले ही उतर चुका था ,पर मेरी बुक वही थी अपनी बुक ले मैं भी जल्दी जल्दी सामान उतारने में मदद करने लगी ,फिर कुली की मदद से रिक्शा कर हम घर पहुंचे घर की हालत खराब थी पापा को ऑफिस भेज हम सब घर की सफाई में माँ की मदद करनेलगे।
नहा कर मैं गाने सुनने लगी सोचा अपनी बुक पढ़लूँ ,बुक खोलते ही पहले पेज पर एक फोन नंबर लिखा था और एक नाम उदय मैसेज भी था" प्लीज कॉल" ,ऊफ !अब ये क्या मुसीबत है,मैंने टालने की बहुत कोशिश की पर मेरा मन कॉल करने को उतावला हो रहा था पर मैंने खुद को रोक लिया ,पहली बार शीशे के सामने खुद को ध्यान से देखने का मन किया ,सच लगा" मैं काफी अच्छी लग रही हूँ "अपनी सच पर हंस मैं बालकनी में आ गयी ,देख कर हैंरान हो गयी की व आशीष(मेरा पड़ोसी )बहांरो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है --------गाना लगा के मुस्कुरा रहा था ,बहुत होगया ,हद्द होती है पर समझ नहीं आ रहा था की मैं कोई अप्सरा तो नहीं जो सब मेरे ही पीछे पड़ गए ,
ललित की याद तक नहीं आयी मुझे ,आशीष गया तो उसका भाई "आँखों में सपना सपनो में सजना------------------------------------- लगा के मेरी तरफ हाथ हिला रहा था ,मेरा मन अब किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था ,आखिर क्या मैं बहुत बुरी लड़की हूँ ?मैंने अपराध क्या किया है जो सब हाथ धो कर मेरे ही पीछे पड़ गए ,खाना भी नहीं खाया ,बुक उठायी तो उसमे भी उदय का नंबर ,मन पूरी तरड़ उचाट हो गया। मुझे मेरी सहेलिया बुलाती रही पर मैं चुप चाप पढ़ने का बहाना कर ,घर में ही रही मेरा खराब मूड देख कर माँ मुझे हलवा बनाना सीखने लगी ,और मैं फिर माँ के साथ बिजी हो गयी,शाम हो गयी थी की अचानक ज़ोर से डोरबेल बजने लगी ,मैंने दरवाज़ा खोला तो दिल धड़कना ही भूल गया ----------------
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