"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter10 pg10 न जाने क्यों
जिंदगी हमेशा हमारी सोच की दिशा से विपरीत ही चलती है ,कितना चाहा था की मैं अपनेआप आप को हर तरह से इस बिमारी से जिससे प्यार कहते है दूर रहूंगी ,पर हा !भाग्य मेरी सोच माँ पापा भइया बहन के दायरे को पार कर कब ,ललित के दरवाज़े तक पहुँच गयी मैं समझ ही ना पायी ,खुद को हर समय धोखा देने की कोशिश की ,अपना ध्यान हमेशा कही और मोड़ना चाहा ,पर शायद मैं कामयाब भी हो जाती ,की मेरी जीजी ने मुझे रोज़ ललित की बाते बताना शुरू कर दिया ,उसका बहुत लड़कियों से संबंध ,उसकी कहानिया उसकी बेशर्मिया ,मेरी उत्सुकता और बढ़ने लगी ,काफी आवारा किस्म का लड़का था वो ,हर लड़की के साथ घूमना फ़्लर्ट करना उसकी आदत थी ये मैं जान चुकी थी किन्तु फिर भी,मेरा मन खुद को उसकी सोच से अलग नहीं कर पा रहा था ,मुझे वो ना जाने क्यों और अच्छा लगने लगा था ,उसकी बातें मुझे अपनी तरफ खींचती रहती थी ,जीजी ने बताया आज ललित किसी लड़की के पीछे उसके घर तक गया पर उसने ललित को रिजेक्ट कर दिया ,जाने क्यों मन बहुत उदास सा था ,मैं शाम को छत पर टहलने चली गयी ,बहुत बड़ी छत थी हमारी ,मैं बस ख्यालो में खोयी चली जा रही थी की मैंने देखा ,ललित भी छत पर ही था और मेरी तरफ आ रहा था,मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था,पर ललित मुझसे बिना कुछ बोले ही चुप चाप नीचे जाने लगा ,मेरी स्थिति अजीब सी थी,मेरा मन भाग रहा था ,मैंने उसे आवाज़ दी ,"ललित "वो पलट कर मेरी तरफ देखने लगा ,और बोला देखो मेरा किसी के साथ के साथ कोई चक्कर नहीं है ,ये सब टाइम पास है मुझे गलत मत समझना , शादी और प्यार ये दोनों खेल नहीं है मेरी नज़र में "और चला गया ,मैं हैरान सी सोचने लगी वो ये मुझे क्यों बता रहा है ,पर दिल की गति अब कंट्रोल में थी ,,,,,क्या वो मुझसे ----नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है ,बाकि अगली पोस्ट में ----------------------------
जिंदगी हमेशा हमारी सोच की दिशा से विपरीत ही चलती है ,कितना चाहा था की मैं अपनेआप आप को हर तरह से इस बिमारी से जिससे प्यार कहते है दूर रहूंगी ,पर हा !भाग्य मेरी सोच माँ पापा भइया बहन के दायरे को पार कर कब ,ललित के दरवाज़े तक पहुँच गयी मैं समझ ही ना पायी ,खुद को हर समय धोखा देने की कोशिश की ,अपना ध्यान हमेशा कही और मोड़ना चाहा ,पर शायद मैं कामयाब भी हो जाती ,की मेरी जीजी ने मुझे रोज़ ललित की बाते बताना शुरू कर दिया ,उसका बहुत लड़कियों से संबंध ,उसकी कहानिया उसकी बेशर्मिया ,मेरी उत्सुकता और बढ़ने लगी ,काफी आवारा किस्म का लड़का था वो ,हर लड़की के साथ घूमना फ़्लर्ट करना उसकी आदत थी ये मैं जान चुकी थी किन्तु फिर भी,मेरा मन खुद को उसकी सोच से अलग नहीं कर पा रहा था ,मुझे वो ना जाने क्यों और अच्छा लगने लगा था ,उसकी बातें मुझे अपनी तरफ खींचती रहती थी ,जीजी ने बताया आज ललित किसी लड़की के पीछे उसके घर तक गया पर उसने ललित को रिजेक्ट कर दिया ,जाने क्यों मन बहुत उदास सा था ,मैं शाम को छत पर टहलने चली गयी ,बहुत बड़ी छत थी हमारी ,मैं बस ख्यालो में खोयी चली जा रही थी की मैंने देखा ,ललित भी छत पर ही था और मेरी तरफ आ रहा था,मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था,पर ललित मुझसे बिना कुछ बोले ही चुप चाप नीचे जाने लगा ,मेरी स्थिति अजीब सी थी,मेरा मन भाग रहा था ,मैंने उसे आवाज़ दी ,"ललित "वो पलट कर मेरी तरफ देखने लगा ,और बोला देखो मेरा किसी के साथ के साथ कोई चक्कर नहीं है ,ये सब टाइम पास है मुझे गलत मत समझना , शादी और प्यार ये दोनों खेल नहीं है मेरी नज़र में "और चला गया ,मैं हैरान सी सोचने लगी वो ये मुझे क्यों बता रहा है ,पर दिल की गति अब कंट्रोल में थी ,,,,,क्या वो मुझसे ----नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है ,बाकि अगली पोस्ट में ----------------------------