"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Wednesday, April 19, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter10 pg10 न जाने क्यों

                  "वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter10 pg10 न जाने क्यों 
जिंदगी हमेशा हमारी सोच की दिशा से विपरीत ही चलती है ,कितना चाहा था की मैं अपनेआप आप को हर तरह से इस बिमारी से जिससे प्यार कहते है दूर रहूंगी ,पर हा !भाग्य मेरी सोच माँ पापा भइया बहन के दायरे को पार कर कब  ,ललित के दरवाज़े तक पहुँच गयी मैं समझ ही ना पायी ,खुद को हर समय धोखा देने की कोशिश की ,अपना ध्यान हमेशा कही और मोड़ना चाहा ,पर शायद मैं कामयाब भी हो जाती ,की मेरी जीजी ने मुझे रोज़ ललित की बाते बताना शुरू कर दिया ,उसका बहुत लड़कियों से संबंध ,उसकी  कहानिया उसकी बेशर्मिया ,मेरी उत्सुकता और बढ़ने लगी ,काफी आवारा किस्म का लड़का था वो ,हर लड़की के साथ घूमना फ़्लर्ट करना उसकी आदत थी ये मैं जान चुकी थी किन्तु फिर भी,मेरा मन  खुद को  उसकी सोच  से अलग नहीं कर पा रहा था ,मुझे वो ना जाने क्यों और अच्छा  लगने लगा था ,उसकी बातें मुझे अपनी तरफ खींचती रहती थी ,जीजी ने बताया आज ललित किसी लड़की के पीछे उसके घर तक गया पर उसने ललित को रिजेक्ट कर  दिया ,जाने क्यों मन बहुत उदास सा था ,मैं  शाम को छत पर टहलने चली गयी ,बहुत बड़ी छत थी हमारी ,मैं बस ख्यालो में खोयी चली जा रही थी की मैंने देखा ,ललित भी छत पर ही था और मेरी तरफ आ रहा था,मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था,पर ललित मुझसे बिना कुछ बोले ही चुप चाप नीचे जाने लगा  ,मेरी स्थिति अजीब सी थी,मेरा मन भाग रहा था ,मैंने उसे आवाज़ दी ,"ललित "वो पलट कर मेरी तरफ देखने लगा ,और बोला देखो मेरा किसी के साथ के साथ कोई  चक्कर नहीं है ,ये सब टाइम पास है मुझे गलत मत समझना , शादी और प्यार ये दोनों खेल नहीं है मेरी नज़र में "और चला गया ,मैं हैरान सी सोचने लगी वो ये मुझे क्यों बता रहा है ,पर दिल की गति अब कंट्रोल में थी ,,,,,क्या वो मुझसे ----नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है ,बाकि अगली पोस्ट में ----------------------------

Sunday, April 16, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter9 pg 9 अनुभूति

                    "वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter9 pg 9 अनुभूति
                                                                           

बहुत ही प्यारी सी सुबह थी ,ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और मैं गार्डन में फूलो की खुश्बुओं में गुम उनके खूबसूरत रंग ,और उड़ती तितलियाँ देख रही थी ,मेरा मन एक कवि  की तरह नयी नयी रचनाये कर रहा था ,शहतूत के पेड़ पर अभी ही एक मोर आया था ,मै चुप चाप पूरी तरह प्रकृति की खूबसूरती में खोयी हुयी थी की अचानक, एक आवाज़ ने मुझे परेशान कर दिया पीछे देखा तो, हाथो में ब्रश लिए कंधे पर तौलिया नाईट सूट में ललित वहां  खड़ा था ,और मुझे गुडमॉर्निंग विश कर रहा था ,मैं उसके वहाँ  होने से uncomfortable फील करने लगी और  गुड मॉर्निग बोल कर अंदर जाने लगी ,जब मैं  उसके पास से गुजरी तो वह बोला कौन सा सोप यूज़ करती हो ,मैं हैरान हो गयी और माइंड यॉरसेल्फ़ कह कर चली गयी ,सोचा चलो मैगज़ीन ही पढ़ती हूँ ,पर आज जाने क्यों मेरा मन विचलित सा था ,सोचने लगी मैं कौन सा सोप यूज़ करती हूँ ,इस से क्या मतलब है उस लड़के का ,मन नहीं लगा तो कमरे में चली गयी पर वहाँ  ललित के गाने की आवाज़ ज़ोर से आ रही थी, आवाज़ बहुत ही अच्छी थी ,ना चाहते हुए भी , मेरा ध्यान उसके गाने पर चला गया , और सुनने का मन भी करने लगा, वह अपनी शख्सियत से विपरीत मुकेश का गाना गा  रहा था ,"कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे --------------------------------  
 मुझे भी  ये गाना बहुत ही प्रिय था, सो मैं बहुत ध्यान से सुनने लगी उसकी आवाज़ की कशिश मुझे अपना ध्यान वहाँ से हटाने ही नहीं दे रही थी , तभी जीजी वहाँ  आ मुझे नाश्ते के लिए बुलाने लगी और न चाहते हुए भी मुझे जाना पड़ा ,नाश्ता करते समय मैंने जीजी से बोला ", अरे!ये ललित गाना  तो बहुत ही अच्छा गाता है ,जीजी हँसने लगी और बोली  अभी बताती हूँ  उसे , मैं घबरा गयी पर जीजी मुझे चिढ़ाती ही रही , दोपहर का खाना खाने के बाद, कुछ देर t.v. देख मैं सो गयी ,शाम को जब बाहर गयी तो फिर वातावरण बड़ा  खुशगवार था , मैं  फिर इधर- उधर चहल कदमी करने लगी पर अचानक लगा कोई मुझे देख रहा है , वह ललित था ,बोला  hi !तुम्हे मेरा गाना अच्छा लगा ,थैंक्स और सुनोगी ,मैंने कहा जी नहीं ,फिर अंदर चली गयी पर अब मन बार बार ललित की तरफ जा रहा था , मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ,बस उसकी बाते सुनना चाहती थी। 
आज सुबह से ही मैंने ना उसकी आवाज़ सुनी ,ना ही उसे देखा ,सोचा जीजी से पूछ लू पर व उससे बतादेगी ये सोच कर  चुप रही ,मेरे कान हर आहट पर लगे हुए थे ,रात को १२ बजे उसके गाने की आवाज़ आयी वो फिल्म देख कर  आया था और गा  रहा था" थोड़ी सी जो  पि ली है चोरी तो नहीं की है --------------------
मेरा मन शांत हो गया और मैं सो  गयी -----------------------------
बाकि अगली पोस्ट में 

Friday, April 14, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter8 pg 8 एहसास

                "वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter8 pg 8  एहसास 

ललित  मुझे गुस्से से ,घूरता हुआ, उठ के चला गया ,सॉरी भी नहीं बोला ,मै बस अपनी मिठाई उठा के वापस आ गयी ,बहुत गुस्सा आ रहा था ,अपने को समझता ही क्या है ?ये लड़का , उसके नाम से ही चढ़ती थी मै ,खैर, शाम को मिल्क डिप्पो पर दूध लेने जाना पड़ता था ,मैंने नई- नई साइकिल चलाना सीखा था ,सो जिद कर, मै ही साइकिल से, दूध लेने चली गयी थी ,अपनी धुन में बहुत ही स्पीड से साइकिल चला रही थी मै ,की अचानक ,मेरी साइकिल के सामने फुल स्पीड में ,एक साइकिल आती दिखी ,तुरंत ब्रेक लगाया किन्तु बैलेंस नहीं कर पायी सो मै  अपनी साइकिल के साथ फिर जमीन पर थी ,और सामनेवाली साइकिल भी गिरी हुयी थी ,दूध फैला हुआ था और ललित वहां  खड़ा अपनी साइकिल और दूध की हालत देख रहा था," वो भी शायद! दूध ले के, अपने घर वापस आ रहा था  ,मैंने बोला  सॉरी,उसने कहा," तुम्हे बिना एक्सीडेंट के चलना मना है क्या ?" मुझे बहुत शर्मिंदगी लग रही थी ,मेरी आँखों में आंसू थे ,मै उठ नहीं पा रही थी ,बहुत दर्द था, शायद, पैर में मोच आ गयी थी ,उसने अपना हाथ आगे किया, और मैंने ,बेसाख्ता ,उससे पकड़ लिया,और उठने की कोशिश की ,ललित शायद ,इसके लिए तैयार नहीं था ,की मैं ,अपना पूरा भार ही ,उसके हाथ पर डाल दूंगी ,वो भी बैलेंस नहीं बना पाया ,और मुझ पर ,गिर पड़ा ,और बोला सॉरी,मुझे हंसी आ गयी ,और मुझे हँसता देख वो भी हसने लगा ,काफी देर वही बैठे रहे हम लोग  और बहुत सारी  बाते की ,१५ मिनट हो गए थे, किसी तरह ,ललित की मदद से उठ कर मै घर पहुंची।
        मैंने उसे थैंक्स कहा ,तो  वो बोला , ओ के ,आज से फ्रेंड्स," मैंने भी हंस के' कहा "फ्रेंड्स ',जाते -जाते, वो बोला ,"वैसे योर हैंडस आर  वैरी सॉफ्ट "मुझे अजीब सी सिहरन हुयी ,और मैं ,जाने क्यों अंदर चली आयी ,और वो अपने घर चला गया।
अंदर सब दूध का इंतज़ार कर रहे थे ,मेरी चोट देख सब दूध भूल मेरी देख भाल में लग गए ,और मैं अनायास अपना हाथ खुद ही ,पकड़, देखने लगी  की, क्या ?वो वाकई बहुत सॉफ्ट है,,फिर अपनी इस हरकत पर मुझे खुद ही कोफ़्त होने लगी सोचा ,अब उस पागल से कभी बात नहीं करुँगी ............बाकि ..........................अगली पोस्ट में ....................................... 

Thursday, April 13, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter7 pg 7 असमंजस

"वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter7 pg 7 असमंजस 

ललित ज्यादातर ,अपने दोस्तों में ही, समय व्यतीत करता था, घर में कम ही नज़र आता ,सो उसके बारे में ज्यादा गौर ,करने का मौका नहीं था,मै  अपनी बहन जो मुझसे सिर्फ  ४ साल ही बड़ी थी ,और अपनी जिंदगी पूरी तरह, मेरे साथ शेयर करती थी,अपने अनुभवों को बताने लगी ,लोग उसे मेरी गुरु ,भी कहा करते थे ,मै उसकी हर बात को मानती थी ,उसने कहा ये, उम्र ऐसी ही है ,और अगर मुझे भी कोई अच्छा लगे तो उसके साथ दोस्ती कर  लेनी चाहिए ,ये एक नार्मल रूटीन टाइप चीज़ है कुछ विशेष नहीं '
फिर उसने मुझसे, कसम ली ,की वो जो मुझे बताने जा रही है, वो मै कभी ,किसी को ना बताऊ ,मेरी जिज्ञासा बढ़ रही थी, सो मैंने कसम खाली ,जीजी ने बताया उसके ४ बॉय फ्रैंड्स ,सब उसका ध्यान रखते है, उसकी पढ़ाई,नोट्स,परीक्षाएं,सिनेमा, होटल ,गिफ्ट ये सभी कुछ आसानी से मिलता है ,वो बहुत खुश है, बस इतना सावधान  रहना है, की वो एक दूसरे को जानते ना हो....कभी एक दूसरे से मिले नहीं,  " मै हैरान हो गयी ये, मै  क्या? सुन रही हु ,विश्वास नहीं हुआ ,और समझ भी नहीं आया की, ये सही है या गलत,क्यूंकि मेरी बहन तो मेरी आदर्श थी, फिर वो  गलत कैसे करेगी ,इसी असमंजस में १५ दिन बीत गए ,मेरी ३ महीने की छुट्टिया थी ,,अचानक एक दिन मेरी बहन बहुत गुस्से में घर लौटी और बोली , मैंने अपने सारे बॉय फ्रेंड्स क छोड़ दिया,क्यों पूछने पर बोली उन सबको एक दूसरे के बारे में पता चल गया ,वो कुछ कहते उससे पहले मैने ही उन पर शक! का इलज़ाम लगा दिया और छोड़  के आ गयी, अब "नया फ्रेंड नई लाइफ"। .........................
मैं सोचने लगी अरे वाह  इट्स सो easy . छुट्टिया गुजर रही थी, मैं मग्न थी जीजी की बातो में की..................
.................. एक दिन उसने  एक नया बम फोड़  दिया ,बोली" सुन अदिति मुझे किसी से प्यार हो गया ज़रा अंदाज़ लगा ,मैं सोचने लगी कौन होगा ?भला ,जिसे मैं भी जानती हूँ ? मैंने उसे ,ललित के साथ, हँसते समय बिताते ,बहुत बार देखा था, मुझे लगा हो सकता है, वो ही हो , पर वो तो जीजी से १ साल छोटा था,पर क्या पता ,क्यूंकि की (ललित के अलावा हमारे किरायेदार क ३ और बेटे भी थे पर) मुझे नहीं लगा की उनसे कोई प्यार कर  सकता है,क्यूंकि वह काफी चरित्रहीन किस्म के , देखने में भी काफी मैले कुचले से थे ,मैं हार गयी ,जीजी हंस के खुद ही बोल पड़ी रवि ,मैं चीख उठी छी वह कितना गंदा ,काला,मूह पर अजीब चालाकी से भरी शातिर ,मुस्कान चहरे पर आंसू जैसे गहरे निशान वह ललित का दूसरे नंबर का बड़ा भाई था ,,,मन खट्टा हो  गया जीजी के इस सलेक्शन से,  इस प्यार से ,पर जीजी बहुत खुश थी ,वह शाम को अक्सर वॉकिंग के लिए जाती मेरे साथ ,वह, वहां  भी आ जाता, फिर ये दोनों  मुझे ,अकेले छोड़, किसी पेड़ के, पीछे घंटो  बैठे रहते ,इनकी अजीब सी, दबी हुयी आवाज़े ,और जीजी की हंसी ,मेरा दिल जोर -जोर से धड़कता रहता ,
एक दिन मुझे पता चला की आज मेरा रिजल्ट आएगा और मैं बहुत खुश हो गयी ,दोपहर को रिजल्ट निकला, मै 1st डिवीज़न से पास हो  गयी थी ,सोचा सबको मिठाईबाँटू  ,सो  किरायेदारों, की तरफ चल पड़ी ,मैं  अपनी धुन में मग्न थी की अचानक एक जोर का  झटका लगा ,देखा ,तो सामने, ललित भी तेज़ गति से आ रहा था, उसका रिजल्ट भी निकला था ,सो  वह हमारे घर मिठाई ला रहा था ,हम दोनों जमीन पर थे और चारो तरफ मिठाईया थी ,,....
बाकि अगली पोस्ट में ..........................
.

Wednesday, April 12, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter6 pg 6प्रेम निवेदन

                   "वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter6 pg 6प्रेम निवेदन 



आशीष और उसके बड़े भाई आनंद की हिम्मते बढ़ती ही जा रही थी मुझे ,ये समझ नहीं आ रहा था कहु  तो किस से कहु ,अभी मै इसी पशोपेश में थी की मोहल्ले का एक और लड़का जिसका नाम मनीष था मेरे कॉलेज के सामने नज़र आने लगा ,मुझे लगने लगा जरूर कोई कमी मुझमे ही है आखिर सब मेरे पीछे ही क्यों?मुहल्ले की और सारी  लड़किया उनकी बहने थी ,क्यूंकि सबके भाई एक दूसरे के दोस्त ,बस मेरा भाई ही छोटा था तो मै बन गयी मुजरिम ,या उनके प्रेम प्रयासों की एकमात्र शिकार ,
           हद हो गयी थी १० की परीक्षा नजदीक आ रही थी और मै ,दिन रात घुट रही थी पढ़ाई में मन नहीं लगता था,हर समय डर सा लगता था की कही मेरे पापा मम्मी मुझे ही गलत ना समझे ,जबकि उन लोगो से मेरा कोई लेना देना नहीं था ,आखिर परीक्षाएं आ ही गयी और मैंने खुद को पूरी तरह कमरे में बंद कर  लिया और शांति से परीक्षाएं  दी ,आखिर परीक्षा के दिन ही मेरा दिल्ली का रिजर्वेशन था सो शाम को ही अपने एक मुंहबोले चचा के साथ ट्रैन वैशाली में बैठ सारी  मुसीबत से दूर चल पड़ी ,
               पर उफ़! ये तो किस्मत ही खराब थी ,मेरे वह चाचाजी पूरे रस्ते अपनी बातो से मुझे बोर करते रहे, और दिल्ली स्टेशन पर ही अपना प्रेम निवेदन कर  बैठे , उफ़ छी ,मै फिर सिहर गयी नफरत से भरी निगाहो से उनके प्रपोसल को ठुकरा ,सोचने लगी ,आखिर सब मेरे ही पीछे क्यों है ,मैं क्या करती हु ,मैंने अंदाजा लगाया मेरा ये बेखोफ हसना शायद सबको गलतफहमी में डालता है ,प्रण कर लिया अब ना किसी से ज्यादा बात करुँगी और ना ही हंसूंगी ,और उदास मन से घर की तरफ चल पड़ी ,घर पहुँचते ही सबसे मिलने की बेताबी में, बेकल मै , जोर -जोर से ,सबका नाम ले कर, पुकारने लगी, हाल में ,कोई आंटी पोछा लगा रही थी ,उन्होंने कहा ,दूसरी तरफ से अंदर जाओ ,हम्म्म ,अच्छा शायद ये किराये दार थे ,मैं  दूसरी तरफ से अंदर गयी.
सबसे मिली दीदी ने बोला  चल तुझे किरायदारों से मिलवाती हु, बहुत अच्छे  है ,मै चली गयी पोंछा लगानेवाली ,आंटी थी ,मैंने नमस्ते की ,बाहर कोई बड़ी बड़ी मूछों और दाढ़ी वाले अंकल टाइप अपने शरीर में तेल लगा रहे थे ,उन्हें अंकल समझ कर मैंने उन्हें भी नमस्ते अंकल कहा ,सबलोग जोर जोर से हसने लगे और ,वह अंकल बोले "एक्सक्यूज़ में आई ऍम नॉट "अंकल ,मैंने कहा सॉरी और घर के अंदर चली गयी पता चला की वह उनके तीसरे नंबर का बेटा ललित है जिसने भी १० की परीक्षा दी है ,उफ्फ्फ फिर नई मुसीबत यहाँ भी।ये लड़का मुझसे दो बरस बड़ा था ,काफी स्मार्ट गोरा चिट्टा किसी भी लड़की को आकर्षित करने वाली सभी बाते थी उसमे 
पर मुझे क्या ?देखा ,और भूल गयी,दादी बाबा सब बहने हम मस्त थे ,संडे को सभी की छुट्टी थी ,तो हम सब भाई बहन और  सारे किरायेदारों के बच्चे जो काफी बड़े थे मिल क़र पकडन पकडाई खेलने लागे ,बहुत मज़ा आया 
               मैंने नोटिस किया वो लड़का हर बार मुझे ही पकड़ने की कोशिश करता था ,actully शायद मै ज्यादा ही होशियार और सावधान बन रही थी ,सो मैंने ignore कर दिया। ......बाकी अगली पोस्ट में ...........................