"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 18 pg 18 विवाह योग
इस प्रेम निवेदन के बाद ,मेरा मन पूरी तरह से पढ़ाई से हट चुका था ,हर समय मन में ललित ही रहता था ,रात दिन सोते जागते जब तक पापा टूर पे थे मैं ललित की बातो में पूरी तरह खोयी रही ,आज सुबह पापा आ गए थे ,और मैं पापा की लडली पापा से नज़रे चुराए इधर उधर बच रही थी की उनका सामना न करना पड़े ना जाने क्यों मेरा मन ये जनता था की मैंने जो किया है वो सही नहीं है ,पापा का विश्वास मुझे उनका सामना ही नहीं करने दे रहा था ,की पापा खुद ही मेरे पास आ गए और बोले "क्यों बिटिया रानी एक बार भी पापा के पास नहीं आयी पापा से कोई गलती हुयी क्या? ,जो मेरी बेटी रूठ गयी मुझसे। अरे अब तो बड़ी हो गयी है मेरे दोस्त का बेटा लेक्चरार है उन्होंने आज ही मेरे हाथ में एक चांदी का सिक्का दे के रिश्ता पक्का कर दिया है,बहुत अच्छा घर है, कोई डिमांड नहीं बस अच्छी लड़की चाहिए तो मेरी बेटी से अच्छी कौन हो सकती है भला मैंने हाँ कर दी देखा भाला घर है ,बहुत भाग्यवान हो तुम जो बिना ढूंढे हीरे जैसा लड़का मिल गया। "
मैं बेचारी ये भी न समझी की इस किशोर और युवा अवस्था के मिलन के समय हर विपरीत लिंग की तरफ ये मन आकर्षित होता है ,ये प्यार नहीं सिर्फ छलावा होता है सिर्फ आकर्षण।
मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया हो कुछ समझ ही नहीं आया की ये क्या हुआ ,मैं भला ललित के सिवा किसी और से विवाह कैसे कर सकती हूँ ,,पर पापा से बिना कुछ कहे पापा का हाथ छुड़ा अंदर चली गयी ,पापा बोले लो शर्मा गयी मेरी प्यारी सी गुड़िया ,मम्मी से बोले तयारी शुरू करो आनेवाली सर्दी तक विवाह क्र हम भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगे.
दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया और ,वही बैठ गयी ,सोचने लगी अब सब को क्या कहूँगी ,की बाहर से कुछ आवाज़े आने लगी ,अरे ये तो ललित की आवाज़ थी ,वो कुछ कह रहा था पापा चिल्ला रहे थे,अचानक जोर से आवाज़ आयी बोले बुलाऊ अपनी लाड़ली को बाहर इसीलिए मेरे सामने नहीं आ रही है अभी फैसला करता हूँ ,माँ मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटा रही थी ,मैं डर के काँप रही थी उफ़ आज क्या होनेवाला था ,माँ मुझे खींचते हुए पापा के सामने ले गयी ,मुझे ऐसी हालत में देख ललित तुरंत बोला चाचीजी आप उसका हाथ छोड़िये वह मेरी अमानत है ,हे राम मुझे लगा धरती फट जाये और मैं उसी में समां जाऊ माँ पापा नफरत से मुझे देख रहे थे,
पापा बोले ओह तुम्हारी अमानत अच्छा,तुम हो क्या ?मेरी बेटी को ये कहनेवाले वह तुम्हारे परिवार की तरह नीच नहीं जो इस तरह की बाते करे ,चले जाओ यहाँ से ,वरना कोई अनर्थ ना हो जाए ,मेरी नज़रे अभी भी नीचे ही थी,ललित ने कहा "अगर आपकी बेटी ये कह दे की उसका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं तो हमेशा के लिए चला जाऊंगा,वरना अपनी मर्ज़ी से जाऊंगा,पूछिए मेरे सामने की जो कहा मैंने वह सच है या नहीं?"
पापा मेरी तरफ देख के बोले "ये मेरा खून है मैं जनता हूँ इसे ,ये सब झूट है,"
ललित ने कहा '"पूछिए चाचा जी अभी इसी समय चला जाऊंगा फिर कभी शक्ल भी नहीं देखेंगे, आप मेरे गुरु भी हैं ,यही मेरी दक्षिणा होगी बार आपकी बेटी को कहना होगा की मेरी कही हर बात झूट है" पापा ने मेरी तरफ देख के बोला चलो आज यही सही ,बोलो बेटी क्या ललित जो कह रहा है वो सही है ,मेरे हाथ पैर दिमाग जुबान कुछ भी मेरे कंट्रोल में नहीं था बस ,मैं जमीन की तरफ देख रही थी और काँप रही थी ,पापा के विश्वास का खून किस तरह किया है मैंने सोच के बस मर जाना चाहती ,ललित ने कहा आज उत्तर ना दिया तो फिर हमेशा के लिए भूल जाना मुझे ,पापा ने फिर पूछा बोलो सही है या नहीं ,अचानक मुझे ना जाने क्या हुआ की मैंने हाथ जोड़ के पापा से कहा सही है ,और उनके गले लग के ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। ललित चला गया। पापा मुझे अपने से अलग कर दूसरे कमरे में चले गए और मैं जैसे पू रे संसार में अकेली रह गयी ,
बेलबज रही थी जा कर दरवाज़ा खोला तो सामने भइया के सर अपनी माँ और बहनो के साथ आये थे ,मैंने अंदर जा कर माँ को बताया ,माँ पापा बाहर र आये और उन्हें ड्राइंग रूम में ले गए ,पर वो आखिर क्यों आये थे ......................................................
इस प्रेम निवेदन के बाद ,मेरा मन पूरी तरह से पढ़ाई से हट चुका था ,हर समय मन में ललित ही रहता था ,रात दिन सोते जागते जब तक पापा टूर पे थे मैं ललित की बातो में पूरी तरह खोयी रही ,आज सुबह पापा आ गए थे ,और मैं पापा की लडली पापा से नज़रे चुराए इधर उधर बच रही थी की उनका सामना न करना पड़े ना जाने क्यों मेरा मन ये जनता था की मैंने जो किया है वो सही नहीं है ,पापा का विश्वास मुझे उनका सामना ही नहीं करने दे रहा था ,की पापा खुद ही मेरे पास आ गए और बोले "क्यों बिटिया रानी एक बार भी पापा के पास नहीं आयी पापा से कोई गलती हुयी क्या? ,जो मेरी बेटी रूठ गयी मुझसे। अरे अब तो बड़ी हो गयी है मेरे दोस्त का बेटा लेक्चरार है उन्होंने आज ही मेरे हाथ में एक चांदी का सिक्का दे के रिश्ता पक्का कर दिया है,बहुत अच्छा घर है, कोई डिमांड नहीं बस अच्छी लड़की चाहिए तो मेरी बेटी से अच्छी कौन हो सकती है भला मैंने हाँ कर दी देखा भाला घर है ,बहुत भाग्यवान हो तुम जो बिना ढूंढे हीरे जैसा लड़का मिल गया। "
मैं बेचारी ये भी न समझी की इस किशोर और युवा अवस्था के मिलन के समय हर विपरीत लिंग की तरफ ये मन आकर्षित होता है ,ये प्यार नहीं सिर्फ छलावा होता है सिर्फ आकर्षण।
मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया हो कुछ समझ ही नहीं आया की ये क्या हुआ ,मैं भला ललित के सिवा किसी और से विवाह कैसे कर सकती हूँ ,,पर पापा से बिना कुछ कहे पापा का हाथ छुड़ा अंदर चली गयी ,पापा बोले लो शर्मा गयी मेरी प्यारी सी गुड़िया ,मम्मी से बोले तयारी शुरू करो आनेवाली सर्दी तक विवाह क्र हम भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगे.
दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया और ,वही बैठ गयी ,सोचने लगी अब सब को क्या कहूँगी ,की बाहर से कुछ आवाज़े आने लगी ,अरे ये तो ललित की आवाज़ थी ,वो कुछ कह रहा था पापा चिल्ला रहे थे,अचानक जोर से आवाज़ आयी बोले बुलाऊ अपनी लाड़ली को बाहर इसीलिए मेरे सामने नहीं आ रही है अभी फैसला करता हूँ ,माँ मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटा रही थी ,मैं डर के काँप रही थी उफ़ आज क्या होनेवाला था ,माँ मुझे खींचते हुए पापा के सामने ले गयी ,मुझे ऐसी हालत में देख ललित तुरंत बोला चाचीजी आप उसका हाथ छोड़िये वह मेरी अमानत है ,हे राम मुझे लगा धरती फट जाये और मैं उसी में समां जाऊ माँ पापा नफरत से मुझे देख रहे थे,
पापा बोले ओह तुम्हारी अमानत अच्छा,तुम हो क्या ?मेरी बेटी को ये कहनेवाले वह तुम्हारे परिवार की तरह नीच नहीं जो इस तरह की बाते करे ,चले जाओ यहाँ से ,वरना कोई अनर्थ ना हो जाए ,मेरी नज़रे अभी भी नीचे ही थी,ललित ने कहा "अगर आपकी बेटी ये कह दे की उसका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं तो हमेशा के लिए चला जाऊंगा,वरना अपनी मर्ज़ी से जाऊंगा,पूछिए मेरे सामने की जो कहा मैंने वह सच है या नहीं?"
पापा मेरी तरफ देख के बोले "ये मेरा खून है मैं जनता हूँ इसे ,ये सब झूट है,"
ललित ने कहा '"पूछिए चाचा जी अभी इसी समय चला जाऊंगा फिर कभी शक्ल भी नहीं देखेंगे, आप मेरे गुरु भी हैं ,यही मेरी दक्षिणा होगी बार आपकी बेटी को कहना होगा की मेरी कही हर बात झूट है" पापा ने मेरी तरफ देख के बोला चलो आज यही सही ,बोलो बेटी क्या ललित जो कह रहा है वो सही है ,मेरे हाथ पैर दिमाग जुबान कुछ भी मेरे कंट्रोल में नहीं था बस ,मैं जमीन की तरफ देख रही थी और काँप रही थी ,पापा के विश्वास का खून किस तरह किया है मैंने सोच के बस मर जाना चाहती ,ललित ने कहा आज उत्तर ना दिया तो फिर हमेशा के लिए भूल जाना मुझे ,पापा ने फिर पूछा बोलो सही है या नहीं ,अचानक मुझे ना जाने क्या हुआ की मैंने हाथ जोड़ के पापा से कहा सही है ,और उनके गले लग के ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। ललित चला गया। पापा मुझे अपने से अलग कर दूसरे कमरे में चले गए और मैं जैसे पू रे संसार में अकेली रह गयी ,
बेलबज रही थी जा कर दरवाज़ा खोला तो सामने भइया के सर अपनी माँ और बहनो के साथ आये थे ,मैंने अंदर जा कर माँ को बताया ,माँ पापा बाहर र आये और उन्हें ड्राइंग रूम में ले गए ,पर वो आखिर क्यों आये थे ......................................................
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