"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Friday, January 18, 2019

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 19 pg 19 विवाह

"वर्तिका अनन्त वर्त की o · chapter 19 pg 19 विवाह

                 पापा मम्मी बाहार आये और उन्हें आदर पूर्वक ड्राइंग रूम में बैठा दिया ,माँ ने मुझे बोला  की चाय बनाओ और साथ में समोसे भी मंगवा लो ,मैं भी हाँ कह कर  चाय बनाने लगी मन बैचैन था आखिर आगे क्या होगा ,बहुत हंसी मज़ाक की आवाज़े आ रही थी ,तभी सर की बहन मिठाई ले किचन में  ही आ गयी और बोली ,भैया का LIC MAIN FIELD OFFICER POST पे  सिलेक्शन हो गया है आपको बधाई ,और मिठाई मेरे मुँह में रख  कर चली गयी , मैं सोचती रही भला इसमें मुझे बधाई देने की क्या बात है ,पर अपनी परेशानिया खुद इस तरह मुँह उठाये खड़ी थी की फिर उन्ही में उलझ गयी ,कुछ समझ नहीं आ रहा था। अचानक उनकी माँ बहन सभी एक ही साथ मेरे पास आ गए और बड़ी ही प्यार भरी निगाहो से मुझे देखने लगे मुझे कुछ भी समझ ना आया ,सो मैंने उनकी माँ के चरण स्पर्श किये उन्होंने बहुत प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगी। माँ सभी को ले फिर ड्राइंग रूम में आ गयी ,और चंद लम्हो के बाद सभी वापस लौट गए ,मुझे  इस समय कुछ सोचने का मन नहीं था ,अपने आपको एक हीरोइन समझ कर हीरो से बिछड़ने के बारे में ,सोच रही थी ,मन कभी सोच रहा था की की कही सर के परिवार वाले शादी की बात करने तो नहीं आये थे ,पर फिर सामने खड़ी मुसीबत के बारे में सोचने लगी
जिंदगी शायद परीक्षा ले रही थी पापा के दोस्त भी अपने बेटे  के साथ आज ही आ रहे थे ,अभी उनका फ़ोन आया था,मम्मी दायी माँ को क्या क्या बनाना है बताने लगी ,और मुझे दांत कर  बोली मुर्ख की तरह क्यों कड़ी हो जाओ ,सभ्य लड़की की तरह तैयार  हो, और कितना दुःख दोगी अपने पापा को ,जहर ही ले आओ बहुत  बड़ी हो गयी हो ना, खा के सो जाते है हम सब  फिर जो चाहे करो.
मुझे बहुत रोना आ रहा था ,और माँ किसी भयानक डायन सी लग रही थी जो मेरे और ललित के बीच खड़ी हुयी थी ,मैं मुँह धो कर तैयार होने लगी पापा को दुःख देना मेरे लिए और संभव ना था ,पर मन उदास था ,
लाल रंग के फ्रॉक सूट में मई लाइट सा मेकअप कर तैयार हो गयी ,पापा मुझे देख कर मुस्कुराये और मेरी सारी  उदासी जैसे कही खो सी गयी। रात को 9 बजे के करीब अंकल अपने परिवार के साथ आये ,उनकी पत्नी नहीं आयी थी बेटा  आया था ,पूरा गोलमटोल फूटबाल की तरह ,हमने खूब बाते की गेम्स खेले और खाना खा के जाते समय अंकल ने फिर अपना एक रुपए का सिक्का पकड़ा दिया मुझे ,और कहा आज से शिखा हमारी ,मैं  हतप्रभ अब भला ये एक सिक्के का कैसा इस्तेमाल है ?कुछ सोचने समझने कहने से पहले वो अपनी गाडी में बैठ कर बाई बोल आगे बढ़ गए , 
मैं पापा की तरफ देख रही थी और पापा मेरी तरफ..............................                                                                          
                                                                                                       बाकि अगली  किश्त  में.........................

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