"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Wednesday, April 12, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter6 pg 6प्रेम निवेदन

                   "वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter6 pg 6प्रेम निवेदन 



आशीष और उसके बड़े भाई आनंद की हिम्मते बढ़ती ही जा रही थी मुझे ,ये समझ नहीं आ रहा था कहु  तो किस से कहु ,अभी मै इसी पशोपेश में थी की मोहल्ले का एक और लड़का जिसका नाम मनीष था मेरे कॉलेज के सामने नज़र आने लगा ,मुझे लगने लगा जरूर कोई कमी मुझमे ही है आखिर सब मेरे पीछे ही क्यों?मुहल्ले की और सारी  लड़किया उनकी बहने थी ,क्यूंकि सबके भाई एक दूसरे के दोस्त ,बस मेरा भाई ही छोटा था तो मै बन गयी मुजरिम ,या उनके प्रेम प्रयासों की एकमात्र शिकार ,
           हद हो गयी थी १० की परीक्षा नजदीक आ रही थी और मै ,दिन रात घुट रही थी पढ़ाई में मन नहीं लगता था,हर समय डर सा लगता था की कही मेरे पापा मम्मी मुझे ही गलत ना समझे ,जबकि उन लोगो से मेरा कोई लेना देना नहीं था ,आखिर परीक्षाएं आ ही गयी और मैंने खुद को पूरी तरह कमरे में बंद कर  लिया और शांति से परीक्षाएं  दी ,आखिर परीक्षा के दिन ही मेरा दिल्ली का रिजर्वेशन था सो शाम को ही अपने एक मुंहबोले चचा के साथ ट्रैन वैशाली में बैठ सारी  मुसीबत से दूर चल पड़ी ,
               पर उफ़! ये तो किस्मत ही खराब थी ,मेरे वह चाचाजी पूरे रस्ते अपनी बातो से मुझे बोर करते रहे, और दिल्ली स्टेशन पर ही अपना प्रेम निवेदन कर  बैठे , उफ़ छी ,मै फिर सिहर गयी नफरत से भरी निगाहो से उनके प्रपोसल को ठुकरा ,सोचने लगी ,आखिर सब मेरे ही पीछे क्यों है ,मैं क्या करती हु ,मैंने अंदाजा लगाया मेरा ये बेखोफ हसना शायद सबको गलतफहमी में डालता है ,प्रण कर लिया अब ना किसी से ज्यादा बात करुँगी और ना ही हंसूंगी ,और उदास मन से घर की तरफ चल पड़ी ,घर पहुँचते ही सबसे मिलने की बेताबी में, बेकल मै , जोर -जोर से ,सबका नाम ले कर, पुकारने लगी, हाल में ,कोई आंटी पोछा लगा रही थी ,उन्होंने कहा ,दूसरी तरफ से अंदर जाओ ,हम्म्म ,अच्छा शायद ये किराये दार थे ,मैं  दूसरी तरफ से अंदर गयी.
सबसे मिली दीदी ने बोला  चल तुझे किरायदारों से मिलवाती हु, बहुत अच्छे  है ,मै चली गयी पोंछा लगानेवाली ,आंटी थी ,मैंने नमस्ते की ,बाहर कोई बड़ी बड़ी मूछों और दाढ़ी वाले अंकल टाइप अपने शरीर में तेल लगा रहे थे ,उन्हें अंकल समझ कर मैंने उन्हें भी नमस्ते अंकल कहा ,सबलोग जोर जोर से हसने लगे और ,वह अंकल बोले "एक्सक्यूज़ में आई ऍम नॉट "अंकल ,मैंने कहा सॉरी और घर के अंदर चली गयी पता चला की वह उनके तीसरे नंबर का बेटा ललित है जिसने भी १० की परीक्षा दी है ,उफ्फ्फ फिर नई मुसीबत यहाँ भी।ये लड़का मुझसे दो बरस बड़ा था ,काफी स्मार्ट गोरा चिट्टा किसी भी लड़की को आकर्षित करने वाली सभी बाते थी उसमे 
पर मुझे क्या ?देखा ,और भूल गयी,दादी बाबा सब बहने हम मस्त थे ,संडे को सभी की छुट्टी थी ,तो हम सब भाई बहन और  सारे किरायेदारों के बच्चे जो काफी बड़े थे मिल क़र पकडन पकडाई खेलने लागे ,बहुत मज़ा आया 
               मैंने नोटिस किया वो लड़का हर बार मुझे ही पकड़ने की कोशिश करता था ,actully शायद मै ज्यादा ही होशियार और सावधान बन रही थी ,सो मैंने ignore कर दिया। ......बाकी अगली पोस्ट में ........................... 

No comments:

Post a Comment