"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Thursday, March 23, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की( pg3)उपन्यास chapter 3 उड़ते पंख

"वर्तिका अनन्त वर्त की( pg3)उपन्यास chapter 3 उड़ते पंख 
मैं बदल रही थी ,अंतर्मुखी होने  के कारण ,घरवालो से हमेशा दूर और डरी हुई रहती थी ,अपनी ख़ुशी की एक अलग दुनिया बना ली थी मैंने, जिस में सिर्फ मैं थी,और किसी का उस दुनिया में आना मुझे पसन्द नही था ,पुरे दिन ,अपनी बड़ी उम्रवाली  सहेलियों की बाते सुनती ,और उनके रोमांटिक विचारो को सुन कर ,हैरान सी होती रहती, सही गलत की ,चर्चा भी भला किस से करती ,मेरी तन्हाई और बाल्यावस्था से युवावस्था में प्रवेश करती उम्र की ,तरफ कोई भी सोचनेवाला ना था ,माँ सांस ननद के चक्कर से मुक्त हो ,हम सभी भाई  बहनो की चिंता करना ,काफी पहले ही छोड़ चुकी  थी ,उन्हें ये स्वछन्द जीवन पहली बार मिला था ,पहले उन्हें सब के सामने घूंघट करना ,बाल बाँध कर रखना ,स्लीवलेस कपड़े नही पहना,आदि बहुत प्रकार की बन्दिशों में रहना पड़ता था ,किन्तु यहाँ वो पूर्ण स्वतन्त्र थी,और सिर्फ इस मुश्किल से प्राप्त अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहती थी.. पापा ज्यादातर टूर पर ही रहा करते थे सो मम्मी और उन्मुक्त हो गयी थी,सिनेमा ,ब्यूटी पार्लर ,क्लब ,ये सभी मेरी मम्मी की जिंदगी के लिए अनिवार्य हो गए थे ,मैं छोटे भाई बहनो को सम्भालती, और सही गलत में उलझी रहती थी,किन्तु एक अच्छे परिवार के जीन्स होने के कारण मैं सिर्फ ख्यालो में ही भटकती थी यथार्थ में मुझे हमेशा सही और गलत का अंतर स्पष्ट पता होता,इसलिए मै पूर्ण रूप से अपनी और अपने भाई बहनो को ,किसी के सम्पर्क में नही आने देती,मेरी माँ सत्यकथाओं आदि पुस्तको को पढ़ने की आदि थी,और हमेशा मुझे इन पुस्तको से दूर रहने को कहा करती,जिसके कारण उन पुस्तको के प्रति मेरा आकर्षण  बढ़नेलगा ,और मैं उन्हें छुप छुप के पढ़ने लगी ,बड़ी अजीब  सी कहानिया होती थी, उनमे,पढ़ के मन फिर उलझ सा ,जाता था,मेरी परेशानी को दूर करनेवाला, कहि कोई भी नही था,पर मेरा मासूम मन ये ,समझ गया था की एक रिश्ता है ,जो छुप के जिया जाता हैं, मैं  बड़ी हो रही थी ,मेरी नज़र भी अब बदलती हुयी अपनी काया को देख रही थी,पर माँ मेरे साथ नही थी, स्तरहीन कहानियो को पढ़ कर  मेरा हर रिश्ते से विश्वास उठ गया था,मैं और भी अंतर्मुखी हो गयी और हर स्पर्श से बचने की कोशिश करती रहती किन्तु आखिर मैं भी इंसान ही थी इतनी उलझी हुयी सिर्फ सवाल और जवाब कोई भी नही........ एक दिन..................................................शेष  अगली  पोस्ट में


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