"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Thursday, March 23, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की( pg2)उपन्यास chapter 2बचपन


.बचपन तो बचपन ही है। हर सही और गलत से परे बस अपनी ही धुन मे ,मेरा ही नही हर बच्चे का  कौन सोचता है ,जिंदगी की गहरी सच्चाई ,हर भला या बुरा माँ पापा की जिम्मेदारी ,और हम बच्चे बस मस्ती ही मस्ती दादी की परी ,दादा की रानी,माँ की बिटिया ,और पापा  का दिल।
ये सम्बोधन, मेरी रक्षा ना कर सके न ,जाने क्यों मेरी माँ ने विकराल रूप धरा और ,मुझे हिंसा को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मान कर, बहुत हिसात्मक रवैये से ,स्कूल भेजने में कामयाब हो गयी ,और मैं हार ही गयी, मम्मी की मार से ,तन कांपता था ,और स्कूल जाना ही बेहतर लगता ,वापस आने पर भी कोई लाभ नही मम्मी मुझे डॉक्टर से कोई ना कोई इंजेक्शन लगवा देती ,सो मैं  स्कूल में ही सुरक्षित थी,
शनै -शनै वक़्त आगे बढ़ता और मेरे पास एक छोटा सा भाई,  भी आ गया ,भाई  तो पहले भी था ,किन्तु ताऊजी के बच्चे उसे सिर्फ ,अपना भाई कहते ,पर अब ये सिर्फ मेरा था ,मैं दिन रात उसकी रक्षा करती ,तीन सालो के बाद फिर एक बहन भी मेरी जिंदगी में आ गयी ,और मैं सभी की नज़रो में बड़ी ही होती चली गयी ,हर बात पर डांट ,मार,बहुत असमंजस में रहती की अचानक मैं सबकी नज़र में बड़ी क्यों हो गयी ,माँ की दूरी मेरे हिस्से  का बंटता हुआ प्यार ,बहुत उदास रहती,भाई की तरफ से मेरे लगाव में  कोई कमी ना आयी, लकिन ये छोटी बहन तो फूटी आंख ना सुहाती थी,मुझे हमेशा लगता ,आखिर मैं थी ना ,फिर इसकी क्या जरुरत,भैया बेटा होने  के कारण ,और बहन सबसे छोटी होने  के कारण, माँ पापा  की आंख के तारे बन गए ,हर चीज़ पर उनकी पसन्द की मोहर लगने लगी ,माँ मुझे अपने पास सुलाती नही ,खिलाती नही,बस काम काम और काम  भैया का ये, छोटी बहन का वो ,अब मैं काफी चिढ़चिढ़ी हो  गयी थी.
हर वक़्त ,माता -पिता के सामने मैं !अपने भाई बहनो से बेहतर हूँ ,ये सिद्ध करने की नाकाम कोशिश करती ,और अपमान और कोप का भाजन बनती ,मैं किसी लायक नही हूँ ,ये जिंदगी का ब्रह्म वाक्य बन गया था, जो मेरी माँ हर समय मुझे कहती ,अब मैं  बहुत दुखी, सी रहती थी ,बचपन खो सा गया था ,वो बेफिक्री अब नही थी हर समय कुछ खोने के डर  से आशंकित सी रहती थी,बहुत अंतर्मुखी हो गयी थी, क्योंकि मेरी बात को ,हमेशा गलत साबित किया जाता था ,मुझे ,ज्यादा लोग अच्छे नही लगते थे ,इसी बीच पापा  ने हम सभी को दिल्ली से बसंतपुर  ले जाने ने का फैसला कर   लिया ,और ना चाहते हुए भी हम सब पापा के साथ चले गए ,मैं  अब 6 क्लास में थी ,ताऊजी के सभी बच्चे मुझसे काफी बड़े थे ,अक्सर अपनी बड़ी बहनो जो की युवा थी, आस पास के लड़को के बारे में छुप -छुप के बात करते हुए देखा था ,किन्तु वहाँ  मेरे हमउम्र दोस्त भी थे ,इसलिए मेरा ध्यान उनकी ओर कभी गया नही, ना दिलचस्पी हुयी ये  जानने की ,की वो क्या कहती और छुपाती रहती है ,मैं अपने बचपन को मस्ती से जी रही थी. हम जहाँ  रहते थे वहाँ  भी ,मुझे मेरी उम्र से काफी बड़ी ,एक लड़की मिली जिससे मेरी अच्छी  दोस्ती हो गयी ,पर भाग्य !ये भी अपनी उम्र अनुसार बस लड़को की ही बार करती,नया  शहर माँ की छोटे बच्चे संभालने की व्यस्तता, मैं  काफी अकेली सी हो गयी थी ,और मैं शायद हम उम्र दोस्त ना मिलने के कारण ,और इन बड़ी लड़कियों से दोस्ती ना टूट जाये, इस अकेलेपन से डर  के इनकी तरह ही बाते करने लगी थी जिसके कारन मेरा पूरा व्यक्तित्व ही बदलने लगा था. ना मैं छोटी ही रही थी, ना बड़ी ही ,,.....................................aage agli post me 

1 comment:

  1. dear friends
    if you really like to read this full story. please comment on my post, and i will post rest,of this very intresting true story of a pampered girl.how ignorance changed her complete life, her affairs, her painful experience about life ...and all the colours of life with very dark black colour expression which make her life complete black .

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