"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Sunday, March 26, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter4 pg 4 मासूम फरिश्ते

"वर्तिका अनन्त वर्त की"chapter4 pg 4 मासूम फरिश्ते 

माँ !अपनी धुन में मगन जिंदगी के खेल में पापा को भी बहुत पीछे छोड़  चुकी थी,जिंदगी की इन स्वतन्त्र गाढे और चमकदार रंगों में वो खुद को रंग चुकी थी,मेरे भाई बहन अपने स्कूल की शिक्षा में व्यस्त थे ,अब मैं काश ८ में थी ,और काफी परिपक्व हो चुकी थी ,माँ की और से तो दिशा हीनता और असहयोग ही मिला था ,माँ लॉयनेस क्लब की सेक्रेटरी थी अब,और किटी पार्टीज की चर्चित महिला भी ,पापा  के पैसो को अपनी हेरा फेरी से कुछ इस तरह, खर्चती की, हम मध्यम वर्गीय लोग भी लोगो को लखपति लगा करते ,दिन रात नई साड़ियां ,नए कपड़े ,सेंडल्स ,किसी चीज़ की कमी नही थी बस हम बच्चो को सिर्फ, त्योहारों पर ही, कपड़े नसीब होते ,पापा के लिए वो भी ,अनियार्य नही था ,रात दिन पापा के दोस्तों की महफ़िल लगती, सब मिल कर ताश खेलते ,खाते पीते और चले जाते। 
यों ही जिंदगी चल रही थी ,माँ ने आज अपनी सहेलियों के साथ फिर सिनेमा का प्लान बनाया था ,भाई बहन स्कूल जा चुके थे मुझे बुखार सा था, सो मैं आज घर पर ही थी पापा सुबह ही टूर पर चले गए थे ,और फिर १२ से ३ के शो हेतु माँ मुझे बाहर से लॉक कर चली गयी, चाभी मेरे ही पास थी ,जो मुझे भाई बहनो को देनी थी, उनके स्कूल से वापस आने पर ,माँ के जाते ही मै सारी  सत्यकथा ,मनोहर कहानिया आदि मैगजीन्स निकल के पढ़ने बैठ गयी,उफ़ बहुत ही अजीब था सब ,उन पुस्तको की तस्वीरे देख मुझे बहुत ही शर्म आती,पर कुछ ही देर में ,मैं  अपनी ख्यालो की दुनिया में जा कर ,अपने लिए किसी  भी, हीरो को अपना साथी ,समझ ख्यालो में खो जाती, और वो सब महसूस करने की कोशिश करती ,
जो मैंने उस घटिया साहित्य में पढ़ा ,ये मेरा सबसे प्रिय खेल था,आज भी माँ के जाने के बाद ,अभी एक कहानी पढ़ी ही थी,की दरवाज़े पे दस्तक हुयी,देखा तो मेरी मकान मालकिन का लड़का था ,मैं जानती थी माँ नही है इसलिए किसी को भी अंदर नही बुलाना है। सो मैंने कहा ," दादा माँ नही है,वो बोला "ठीक है तुम ,खिड़की पर आ जाओ "मै वहाँ  गयी तो उसने मुझे एक पुस्तक दी और बोला "ये बहुतअच्छी कहानियो की किताब है, इससे पढो, कुछ न समझ आये, तो पूछना ,पर किसी को भी देना या बताना मत, इस के बारे में। ,मैंने कहा क्यों दादा ?वो बोला सब जलते है तुमसे छीन लेंगे ,और फिर मुझे तुमसे बात भी नही करने देंगे ,मैंने सोचा दादा अक्सर मेरे लिए आइसक्रीम लाता था, और लड़ाइयों में भी, मेरा ही साथ देता था ,,भला इसको क्यों खो दू मैं ,मैंने कसम खा ली ये ,बात बस हम दोनों के बीच ही रहेगी ,वो चला गया. 
पुस्तक बहुत ही छोटी सी थी ,उस पर न्यूज़ पेपर का बेतरतीब सा कवर था ,मैंने सोचा चलो इस का कवर ठीक कर  दू , कवर को हटाते ही होश ही उड़ गए मेरे ,उस पर तरह तरह के अश्लील  चित्र थे ,मेरे अंतर्मन ने तुरन्त कहा ये ठीक नही ,मैंने घबरा के पुस्तक माँ के कमरे में रख दी,सब के आने का टाइम भी हो गया था ,भाई बहन आ गए और कहना खा कर सो भी गए मैं अब तक सहमी  हुयी थी,मम्मी भी आगयी,मेरी शक्ल देख कर बोली क्या हुआ ?नाराज़ ना हो संडे को हम सब चलेंगे ,मैं मम्मी से लिपट गयी,और रोने लगी ,माँ भी घबरा गयी ,बोली बताओ मेरी बेटी हुआ क्या ?सब बता कर वो पुस्तक माँ के हाथ में रख दी,मेरी माँ मुझे गले से लगा कर  रो पड़ी। शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया,पुस्तक ले वो तुरन्त ही मकान मालिक के घर गयी ,काफी लड़ाई हुयी ,और हमने वो घर बदल दिया. और मैं एक हादसे से बच गयी पर जिंदगी बहुत लम्बी है अभी तो फिर जिंदगी का एक नया  दौर शुरू हुआ मेरी युवावस्था का दौर। ............................................

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