"वर्तिका अनन्त वर्त की o

एक मासूम सी लड़की जो अचानक ही बहुत समझदार बन गयी पर खुद को किस्मत के हादसों ना बचा पायी,जो बेक़सूर थी पर उस को सजा का हक़ दार चुना गया
ITS A NOVEL IN MANY PARTS ,

Thursday, March 23, 2017

"वर्तिका अनन्त वर्त की"( pg1)उपन्यास बदलते रंग

..मेंरे प्यारे दोस्तों,
आज लेखनी के माध्यम से मैं एक भोली भाली लड़की के जीवन के अनुभवों को कहानी का रूप दे कर प्रस्तुत करुँगी जिंदगी के उतार- चढाव, सुख- दुःख ,,जो पहेली बन कर उसकी जिंदगी में ,सदैव ही, आते रहे, और बिना सूलझे ही , दूसरे प्रश्नों में उलझा , कर लोप होते रहे ,पर जिंदगी बढती रही, का विस्तृत वर्णन करने का प्रयास करूँगी उसकी जिंदगी ज्यादा देर, कभी एक तरह के रंग में नही रही बहुत से बेशुमार रंग देखे है उसने ,,इतने रंगों को देखने के बाद शायद अब, उसे दो रंग ही, सच्चे और अपने लगते है,एक काला औरएक सफेद, बाकि रंग बस मौसम की तरह ही बदलते है ,पर ये दो रंग जिंदगी में इस तरह आते है, की फिर कोई मौसम ,इन्हें बदल नही पाता ,खास कर ये दर्द का काला रंग ,ये इस तरह जिंदगी को ,खुद में गुम कर लेता है की, अपना अस्तिव ही बदल जाता है.
उसकी खूबसूरत जिंदगी, सच बहुत ही खूबसूरती से, बदसूरती में बदलती चली गयी ,सोचा की कही ये , दर्द के रंग उसकी जिंदगी, के साथ ही खतम न हो जाये ,क्यों न कुछ सच्चे हमदर्द ,जो उसकी सूरत से अपरिचित ,किन्तु उसके दर्द से परिचित हो, मैं ये दर्द बाँट पाऊ ,जो उसके दर्द के रंगों को अनुभव कर अपने जीवन के रंग बदल सके।
कहानी के मुख्य पात्र माता पिता
नाम अदिति , भाई सृजन और बहन आकृति ,
इसी प्रकार क्रमशः मेरे चचेरे भाई बहन सविता कविता प्रमेय
ललित और सर (टीचर ]
अन्य बहुत से चरित्र जो आये और चले गए.
ये कहानी मैं स्वयं को अदिति के रूप में प्रस्तुत कर उसकी जुबानी ही आप तक पहुचाउंगी ताकि आप उसकी बदलती भवनाओ और असमंजस को गहराई से समझ सके .
सर्वप्रथम अदिति का एक परिचय अदिति एक सुंदर प्यारी संस्कारी और आज्ञाकारी लड़की थी ,जिसकी जिंदगी कमशः अनुभवों से बदलती चली गयी और जीवन के अंत में वो जीवन को बिना समझे ही संसार से चली गयी 
दोस्तों ये कहानी किश्तों में आप तक पहुचाउंगी आशा है आप इससे पसंद करेंगे नमस्ते शिखानारी...........

."वर्तिका अनन्त वर्त की"( pg1)उपन्यास बदलते रंग 
                   अपने बचपन से शुरू करती हु, इस वादे  के साथ की, अपनी हर याद के साथ इन्साफ करूँगी ,ये कहानी ,ममता ,भरोसे ,प्यार,धोखे ,दर्द जुदाई ,अपमान,बेबसी,बेरुखी,सभी तरह के मसालो से,सुसज्जित है। 
मेरे और मेरे भाई बहनो के बीच ७-८ साल का अंतर रहा था ,सो इस अंतर को मैंने इकलौती औलाद के रूप में जहाँ बहुत प्यार ,मिलने के कारण शायद मैं ,काफी जिद्दी हो गयी थी, और माता- पिता पर अपना पूर्ण अधिकार समझती थी ,पापा  ,दादा- दादी, सबकी बहुत लाडली थी। देखने में मैं एक बहुत गोरी गोल मटोल सी बच्ची थी ,जो बहुत सूंदर है के सार्टिफिकेट से नवाजी गयी थी , मेरी हर बात को पूरा करने की ,वो हर सम्भव कोशिश किया करते थे ,शायद उन सबके बीच, एक प्रतियोगिता सी लगी रहती थी ,की कौन मुझे, ज्यादा प्यार करता है, और मैं ,इस स्थिति का पूरा लाभ उठती थी, और मम्मी- पापा सब का उपयोग, अपनी इच्छाये ,पूरी करने में करती थी,  दादा- दादी, माँ -पापा के प्यार में, खुद को बहुत ही जरूरी और खास समझने लगी ,
हम सब ,पापा के बड़े भाई, मेरे ताऊजी के परिवार के साथ ही रहा करते थे ,उनके 3 बच्चे थे मैं ही छोटी थी और पापा  भी दिल्ली से बाहर रहा करते थे, सो ताऊजी की भी लाडली थी मैं ,
पापा  जब भी आते ,मेरे लिए बहुत से खिलौने, आदि लाते ,और मैं और भी ,खास बन जाती थी ,पाप हर काम मेरी इच्छा से करते ,
ये बहुत ही खूबसूरत दौर था ,मेरी जिंदगी का, हंसती खेलती बस जिंदगी आगे बढ़ रही थी ,अब मेरे स्कूल जाने का समय काल भी आ पंहुचा था 
हर माँ की तरह मेरी प्यारी माँ भी मुझे स्कूल भेजने के लिए बहुत उत्सुक थी ,दादाजी सिविल सर्विसेज में थे इसलिए स्कूल वालो की भी मुझ पर विशेष कृपा रहती थी ,पर स्कूल का वातावरण, जहाँ अध्यापिकाएं मुझे बहुत "खास" ना समझ कर सामान्य व्यवहार करती मुझे बिलकुल ना भाता ,किसी से डरना ,किसी का मुझे डाँटना ,ये सब बहुत अजीब था मेरे लिए सो स्कूल जाने के समय ,मैं बहुत तकलीफ देती ,मेरी माँ मुझे घर के कामकरनेवाले व्यक्ति  की साईकिल के कैरियर से बांध देती,और वो मुझे मेरे स्कूल के गेट के अंदर पहुँचा कर वापस आता,पर मैं लंच टाइम में रो- रो कर वापिस आ जाती ,सबको ऐसा लगने लगा था की मैं पढ़ नही पाऊँगी ,सब हार गए थे ,और मैं मैडम सपेशल बहुत खुश थी ,होमवर्क क्लासवर्क सब निल परीक्षा में अनुपस्थित रहती थी ,आखिर मेरी मम्मी ने अपना रूप बदल डाला।।।।।।।।।।।।अब आगे अगली पोस्ट में

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