वर्तिका अनन्त वर्त की o chapter14 (अहसास )
ललित को देख कर भी ,मुझे कुछ खास ख़ुशी नहीं हुयी थी ,पर फिर भी मैंने मुस्कुरा के अभिवादन किया और माँ को आवाज़ दी ,माँ ललित को देख कर बहुत ही प्रसन्न हो गयी और जलपान क प्रबंध में लग गयी मैं ,t.v देखने लगी अचानक ललित ने मुझे आवाज़ दी मैं हैरान हो गयी ,बोला तुम्हे मैनर्स नहीं है की एक गिलास पानी दे दो कोई इतनी दूर से आया है ,बहुत गुस्सा आया पर माँ के डर से पानी दिया ,उसने गिलास लेते समय मेरा हाथ को पकड़ लिया ,मुझे इतना बुरा लगा की बयान करना मुश्किल था ,वो मुस्कुरा रहा था ,वो तुरंत बोला सॉरी उसकी ये बेबाकी असहनीय थी मेरे लिए सौ बार अपने हाथ को धोया मैंने ,पर गुस्सा था की कम होने का का नाम नहीं ले रहा था ,उसकी मुस्कुराहट जले पर नमक का काम कर रही थी ,वो जब मेरी तरफ देखता मुस्कुरा देता। ललित के कारण अपना ही घर बेगाना लग रहा था मुझे और ललित, वो जैसे मुझे परेशां करने नए बहाने ढुंढ रहा था कभी चाय कभी खाना ,कभी मेरे साथ खेलने की ज़िद कभी मेरा पार्टनर बन खुद हार जाना ,हर समय मुझे बहुत ही स्पेशल महसूस करवा रहा था ,यहाँ तक की मेरे भाई बहन भी ये अनुभव कर रहे थे की वो मेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान रख रहा था ,बहन छोटी होने के कारण मस्त रहती पर भाई ने इसका विरोध कर दिया ,और ललित ने सिर्फ एक चॉकलेट डेली में उससे भी सेटिंग कर ली।
भैया के सर काफी दिनों से नहीं आ रहे थे ,पता चला की वे कोई परीक्षा देनेवाले है और उसकी तैयारी में लगे है ,मेरी परीक्षाएं भी पास आ गयी थी आज ललित की वापस जाना था ,5 दिनों से उसके होने के कारण टाइम कैसे बीता पता ही ना चला वो जा रहा था मेरा दिल ना जाने क्यों उदास था शाम की ट्रैन थी वो चला गया मैं काफी देर बालकनी में बैठी रही मन नहीं लग रहा था जाने क्यों में चाहती थी वो वापस आ जाये ,अचानक वो ऑटो पर वापस आता दिखा विश्वास नहीं हुआ ,ख़ुशी से मन तरंगित था अनोखा सा अनुभव ,पापा के पूछने पर बोला ट्रैन छूट गयी ,सब सामान्य हो गया ,4 दिन बाद का टिकट मिला फिर लड़ाई खेल सभी कुछ पहले की भांति हो गया ,फिर उसके वापस जाने का दिन आ गया ,भाई साथ गया और मेरे संशय के अनुसार वो फिर वापस आ गया ,ट्रैन २4 घंटे लेट है ये बताकर सोने चला गया पापा ने भाई की तरफ देखा तो भाई ने भी हाँ में हाँ भरी ,पापा मन में संशय के साथ सो गए ,और मैँ संशय के साथ जगती रही कुछ हो रहा था जो बहुंत नया था
बाकि अगली किश्त में
ललित को देख कर भी ,मुझे कुछ खास ख़ुशी नहीं हुयी थी ,पर फिर भी मैंने मुस्कुरा के अभिवादन किया और माँ को आवाज़ दी ,माँ ललित को देख कर बहुत ही प्रसन्न हो गयी और जलपान क प्रबंध में लग गयी मैं ,t.v देखने लगी अचानक ललित ने मुझे आवाज़ दी मैं हैरान हो गयी ,बोला तुम्हे मैनर्स नहीं है की एक गिलास पानी दे दो कोई इतनी दूर से आया है ,बहुत गुस्सा आया पर माँ के डर से पानी दिया ,उसने गिलास लेते समय मेरा हाथ को पकड़ लिया ,मुझे इतना बुरा लगा की बयान करना मुश्किल था ,वो मुस्कुरा रहा था ,वो तुरंत बोला सॉरी उसकी ये बेबाकी असहनीय थी मेरे लिए सौ बार अपने हाथ को धोया मैंने ,पर गुस्सा था की कम होने का का नाम नहीं ले रहा था ,उसकी मुस्कुराहट जले पर नमक का काम कर रही थी ,वो जब मेरी तरफ देखता मुस्कुरा देता। ललित के कारण अपना ही घर बेगाना लग रहा था मुझे और ललित, वो जैसे मुझे परेशां करने नए बहाने ढुंढ रहा था कभी चाय कभी खाना ,कभी मेरे साथ खेलने की ज़िद कभी मेरा पार्टनर बन खुद हार जाना ,हर समय मुझे बहुत ही स्पेशल महसूस करवा रहा था ,यहाँ तक की मेरे भाई बहन भी ये अनुभव कर रहे थे की वो मेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान रख रहा था ,बहन छोटी होने के कारण मस्त रहती पर भाई ने इसका विरोध कर दिया ,और ललित ने सिर्फ एक चॉकलेट डेली में उससे भी सेटिंग कर ली।
भैया के सर काफी दिनों से नहीं आ रहे थे ,पता चला की वे कोई परीक्षा देनेवाले है और उसकी तैयारी में लगे है ,मेरी परीक्षाएं भी पास आ गयी थी आज ललित की वापस जाना था ,5 दिनों से उसके होने के कारण टाइम कैसे बीता पता ही ना चला वो जा रहा था मेरा दिल ना जाने क्यों उदास था शाम की ट्रैन थी वो चला गया मैं काफी देर बालकनी में बैठी रही मन नहीं लग रहा था जाने क्यों में चाहती थी वो वापस आ जाये ,अचानक वो ऑटो पर वापस आता दिखा विश्वास नहीं हुआ ,ख़ुशी से मन तरंगित था अनोखा सा अनुभव ,पापा के पूछने पर बोला ट्रैन छूट गयी ,सब सामान्य हो गया ,4 दिन बाद का टिकट मिला फिर लड़ाई खेल सभी कुछ पहले की भांति हो गया ,फिर उसके वापस जाने का दिन आ गया ,भाई साथ गया और मेरे संशय के अनुसार वो फिर वापस आ गया ,ट्रैन २4 घंटे लेट है ये बताकर सोने चला गया पापा ने भाई की तरफ देखा तो भाई ने भी हाँ में हाँ भरी ,पापा मन में संशय के साथ सो गए ,और मैँ संशय के साथ जगती रही कुछ हो रहा था जो बहुंत नया था
बाकि अगली किश्त में
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